(देवेंदर शर्मा): एक समय था जब धान के अवशेष यानी पराली को किसान कबाड़ समझकर खेत में जला दिया करते थे जिसके चलते वायु प्रदूषण में बेतहाशा इजाफा होता था। लेकिन अब धान की कटाई के बाद पराली हाथों हाथ बिक रही है। जिसके चलते किसान और खरीदने वाले दोनों को मुनाफा हो रहा है। दिल्ली से रोहतक के गांव पहरावर में पहुंचे पराली खरीदने वाले अरुण ने बताया कि वह किसानों की पराली खरीद रहे हैं और उसे ट्रैक्टरों के माध्यम से एक जगह इकट्ठा करते हैं।
जहां से उसे चारे के रूप में काटकर राजस्थान उत्तर प्रदेश और दिल्ली में सप्लाई कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ पराली की गत्ता फैक्ट्री में भी काफी मांग बताई गई है। खेतों से पराली बिकने के बाद किसान को भी फायदा हो रहा है। 5 से 6 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से बिकने वाली पराली से उसके खेत में हुए खर्च का बोझ कम हो रहा है।
आजकल हरियाणा में धान की कटाई जोरों पर है। किसान धान काटने के बाद धान को मंडियों में बेच रहे हैं और बचे अवशेष को गांव-गांव खरीदने आ रही पार्टियों को बेच रहे हैं। दिल्ली से जिला रोहतक के गांव पहरावर में पहुंचे धान की पराली खरीदने वाले अरुण ने बताया की गेहूं का भूसा काफी महंगा हो गया है। जिसके चलते पशुपालक पराली के भूसे को पशुओं को खिला रहे हैं, जिससे इसकी मांग काफी बढ़ रही है।
वह किसानों के खेतों से पराली खरीद कर उसका चारा बनाकर राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भेज रहे हैं। जहां चारा हाथों हाथ बिक रहा है। वहीं पराली की गत्ता फैक्ट्री में भी काफी मांग बढ़ रही है। अब कोई किसान पराली नहीं जला रहा है। क्योंकि पराली बिकने से किसान को भी फायदा हो रहा है और उन्हें भी फायदा हो रहा है।
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उधर पराली बेचने वाले किसानों का कहना है कि अब कोई भी किसान पराली नही जला रहा है। क्योंकि पराली हाथों हाथ बिक रही है। 5 हजार से लेकर 6 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से लोग खेत से ही उठा ले जाते हैं। और फिर उसको काटकर चारे के रूप में सप्लाई कर रहे हैं। पराली के पैसे मिलने से उनके खेत में हुए खर्च का बोझ कम हो जाता है। अब कोई किसान जलाने की बजाए सभी बेच रहे हैं।
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