Digital Arrests: उच्चतम न्यायालय ने देश में ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं, विशेषकर फर्जी न्यायिक आदेशों के माध्यम से नागरिकों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने के मामलों का संज्ञान लेते हुए इस संदर्भ में केंद्र और सीबीआई से जवाब मांगा है और कहा है कि इस तरह के अपराध न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव पर कुठाराघात हैं। Digital Arrests
शीर्ष अदालत ने हरियाणा के अंबाला में अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों के आधार पर एक बुजुर्ग दंपति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर उनसे 1.05 करोड़ रुपये की उगाही की घटना को गंभीरता से लिया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यह साधारण अपराध नहीं है जिसमें पुलिस से कह दिया जाए कि तेजी से जांच करे और मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाए। Digital Arrests
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पीठ ने कहा कि बल्कि यह ऐसा मामला है जिसमें आपराधिक उपक्रम का पूरी तरह पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयास जरूरी हैं। न्यायालय ने शुक्रवार को देश भर में डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई और 73 वर्षीय महिला द्वारा 21 सितंबर को भारत के प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई को लिखे पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज किए गए मामले में केंद्र और सीबीआई से जवाब मांगा। Digital Arrests
पत्र में सूचित किया गया था कि दंपति को अदालत के आदेशों का भय दिखाकर ठगा गया। पीठ ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों सहित निर्दोष लोगों को डिजिटल अरेस्ट करने के लिए उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के आदेशों और न्यायाधीशों के हस्ताक्षरों की जालसाजी करना न्यायिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास और आस्था पर कुठाराघात है। Digital Arrests
‘डिजिटल अरेस्ट’ ऑनलाइन धोखाधड़ी है, जिसमें जालसाज खुद को फर्जी तरीके से किसी सरकारी एजेंसी या पुलिस का अधिकारी बताकर लोगों पर कानून तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्हें धमकाते हैं और गलत तरह से धन वसूली की कोशिश करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों के जाली हस्ताक्षरों वाले न्यायिक आदेश तैयार करना, कानून के शासन के अलावा न्यायिक व्यवस्था में जनता के विश्वास की नींव पर कुठाराघात करता है। इस तरह की कार्रवाई संस्था की गरिमा पर सीधा हमला है।’’
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न्यायालय ने कहा कि दस्तावेजों की जालसाजी तथा इस न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम, मुहर और न्यायिक आदेशों का आपराधिक दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है और इस तरह के गंभीर आपराधिक कृत्य को धोखाधड़ी या साइबर अपराध के सामान्य या एकल अपराध के रूप में नहीं लिया जा सकता। Digital Arrests
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेने के लिए भी इच्छुक हैं कि यह मामला एकमात्र मामला नहीं है। मीडिया में कई बार ये खबरें आई हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे अपराध हुए हैं। इसलिए, हमारा मानना है कि न्यायिक दस्तावेजों की जालसाजी, निर्दोष लोगों, खासकर वरिष्ठ नागरिकों से जबरन वसूली/लूट से जुड़े आपराधिक उपक्रम का पूरी तरह से पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयासों और कार्रवाई की आवश्यकता है।’’
पीठ ने अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी और हरियाणा सरकार तथा अंबाला साइबर अपराध विभाग को बुजुर्ग दंपति के मामले में अब तक की गई जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। यह मामला शिकायतकर्ता महिला द्वारा अदालत के संज्ञान में लाया गया था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि घोटालेबाजों ने 3 से 16 सितंबर के बीच दंपति की गिरफ्तारी और निगरानी की बात करने वाला स्टाम्प और मुहर लगा एक जाली अदालती आदेश पेश किया और कई बैंक लेनदेन के माध्यम से एक करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की। Digital Arrests
महिला ने कहा कि उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी देते हुए फर्जी तरीके से सीबीआई और ईडी अधिकारी बनकर कुछ लोगों ने कई ऑडियो और वीडियो कॉल के जरिए अदालती आदेश दिखाए। शीर्ष अदालत को बताया गया कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के विभिन्न प्रावधानों के तहत अंबाला स्थित साइबर अपराध विभाग में दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।