India-Canada issues- अमेरिका के एक विशेषज्ञ ने ब्रिटिश कोलंबिया में सिख अलगाववादी नेता की हत्या पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को ‘शर्मनाक और सनकी कार्रवाई’ करार दिया और अमेरिका से इसका हिस्सा नहीं बनने का आग्रह किया। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो माइकल रुबिन ने भारत पर ट्रूडो की कार्रवाई को बेशर्मी से भरा और निंदनीय बताया। साथ ही उन्होंने 2020 में कनाडा में हुई बलोच कार्यकर्ता करीमा बलोच की मौत के मामले का जिक्र करते हुए कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो की चुप्पी पर सवाल उठाया। करीमा की मौत के पीछे कथित तौर पर पाकिस्तान का हाथ होने की बात कही गई थी।
हडसन इंस्टीट्यूट थिंक टैंक में पैनल डिस्कशन में हिस्सा लेते हुए रुबिन ने कहा कि कथित तौर पर पाकिस्तानी तत्वों का करीमा बलोच को डुबोना पुलिस से जुड़ा मामला है और इसे प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं ले जाया गया। उन्होंने कहा कि कनाडा के राजनेताओं को और ज्यादा जिम्मेदार होने की जरूरत है क्योंकि वे आग से
खेल रहे हैं। माइकल रुबिन ने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ बाहरी लोग खालिस्तान आंदोलन को दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
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सिख्स ऑफ अमेरिका के संस्थापक और अध्यक्ष जस्सी सिंह ने कहा कि अमेरिका को इसे दुनिया भर में हो रही किसी भी चीज के रूप में सीधे खतरे के रूप में देखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत और दूसरे दक्षिण एशियाई देश दुनिया के उस हिस्से में इस आतंकवाद के खतरों से ज्यादा तेज़ी से प्रभावित होते हैं।सिंह ने कहा कि खालिस्तानी आंदोलन अमेरिका में बहुसंख्यकों की आवाज का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उन्होंने कहा कि भारत में सिख खालिस्तान के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सिख आज भारतीय सेना में देश की रक्षा कर रहे हैं, चाहे वो चीन के खिलाफ हो या पाकिस्तान के खिलाफ हो।
जस्सी सिंह, फाउंडर और चेयरमैन, सिख्स फॉर अमेरिका:-भारत में सिख खालिस्तान के पक्ष में नहीं हैं। सिख आज भारतीय सेना में देश की रक्षा कर रहे हैं, चाहे वो चीन के खिलाफ हो, चाहे वो पाकिस्तान के खिलाफ हो। यहां 10 लाख सिख रहते हैं और उनमें से कुछ ही, बहुत कम प्रतिशत विरोध प्रदर्शनों में शामिल होते हैं जो खालिस्तान की मांग कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि सिखों की इस बड़ी संख्या के साथ, जो अभी शांत हैं, उनके दिल में कहीं न कहीं वो दर्द है कि 80 के दशक में उनके साथ क्या हुआ, 90 के दशक में उनके साथ क्या हुआ।
माइकल रुबिन, सीनियर फेलो, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट :-जब कनाडा की बात आती है, तो जस्टिन ट्रूडो की बेशर्म कार्रवाई और सनकी कार्रवाई से मुझे वास्तव में जो बात परेशान करती है, वो ये है कि वो प्रधानमंत्री कार्यालय से तब इस तरह के बयान दे रहे हैं जब हमारे पास करीमा बलोच जैसे मामले थे। जो डूब गई थी और जाहिर तौर पर शायद कुछ पाकिस्तानी मदद के साथ। इसलिए सवाल ये है कि विसंगति क्यों है, अगर ये लोकलुभावन राजनैतिक दिखावा नहीं है। ये लॉन्ग टर्म में जस्टिस ट्रूडो की मदद कर सकता है, लेकिन ये लीडरशिप नहीं है। वास्तव में यहां और कनाडा में हमारे राजनेताओं को ज्यादा जिम्मेदार होने की जरूरत है क्योंकि वे आग से खेल रहे हैं।
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