प्रदीप कुमार – केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में लोकसभा में एक लिखित उत्तर में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। केंद्रीय कृषि मंत्री बताया है कि बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश झारखंड, पश्चिम बंगाल एवं गुजरात जैसे कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने कुछ मौसमों के लिए इसे लागू करने के बाद पीएम फसल बीमा योजना से बाहर होने का विकल्प चुना है।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि जोखिम एवं वित्तीय बाधाओं के बारे में धारणा जैसे अपने स्वयं के कारणों से उन्होंने फसल बीमा योजना से बाहर निकलने का विकल्प चुना। हालांकि आंध्र प्रदेश खरीफ 2022 सीज़न से इस योजना में फिर से शामिल हो गया है एवं पंजाब ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रयासों के कारण ऐसा करने की बजट घोषणा की है।
केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी है कि जोखिम धारणा एवं वित्तीय विचारों आदि के बारे में उनके विचार के आधार पर, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना योजना के तहत सदस्यता ग्रहण करने हेतु स्वतंत्र हैं। केंद्रीय मंत्री की ओर से जानकारी दी गई है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) योजना किसानों के लिए भी स्वैच्छिक है। वे अपनी जोखिम धारणा के अनुसार स्वयं को नामांकित कर सकते हैं।
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पीएम फसल बीमा योजना (PMFBY) योजना को भारत में खरीफ 2016 सीजन से शुरू किया गया था। अब तक, 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने एक या अधिक मौसमों में पीएम फसल बीमा योजना (PMFBY) योजना लागू की है।
PMFBY योजना के तहत कवरेज यानी इसे लागू करने वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 2016-17 में योजना के प्रारंभ के पश्चात से सकल फसल क्षेत्र (ग्रॉस क्रॉप्ड एरिया/जीसीए) का लगभग 30% रहा है। PMFBY प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और रोगों के परिणामस्वरूप किसी भी अधिसूचित फसल के विफल होने की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज एवं वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
दरअसल केंद्र सरकार जहां फसल बीमा योजना के तमाम फायदे गिनाती है तो वहीं बीजेपी शासित राज्यों के भी इस योजना से बाहर होने से तमाम सवाल खड़े होते हैं।कहा जा रहा है कि फसल बीमा योजना से बीमा कंपनियों ने पिछले पांच साल में भारी कमाई की है
माना जा रहा है कि जो राज्य खुद को फसल बीमा योजना से बाहर कर रहे हैं इसका कारण बीमा कंपनियों की मनमानी या फिर भारी भरकम प्रीमियम है।
दरअसल, फसल बीमा में प्रीमियम के तीन पार्ट होते हैं। किसान, राज्य और केंद्र।ये तीनों मिलकर प्रीमियम कंपनी को देते हैं। किसानों का हिस्सा बहुत कम होता है। ज्यादातर प्रीमियम केंद्र और राज्य मिलकर देते हैं। यह पैसा भी टैक्सपेयर्स का होता है. इसलिए बीमा कंपनियों को मिलने वाले प्रीमियम के रूप में सिर्फ किसानों की जेब से गई रकम को ही गिनना तार्किक नहीं दिखता है।
एक आंकड़े के मुताबिक कहा जा रहा है कि अगर राज्य और केंद्र सरकार मिलकर खुद फसल नुकसान पर किसानों को मुआवजा Compensation दें तो या तो फसल नुकसान झेलने वाले किसानों को ज्यादा पैसा मिलता या फिर सरकारें बीमा कंपनियों को मिलने वाली बड़ी रकम बचा लेतीं।
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