उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका, पर निंदनीय’टिप्पणी मामले में निशिकांत दुबे को लगाई फटकार

Nishikant Dubey:

Nishikant Dubey: उच्चतम न्यायालय ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की उसके और प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ की गई टिप्पणियों की निंदा करते हुए कहा कि ये ‘‘दुर्भावनापूर्ण’’ हैं और शीर्ष अदालत के अधिकार को कमतर करती हैं। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा, “साथ ही, हमारा यह दृढ़ मत है कि अदालतें फूलों की तरह नाजुक नहीं हैं जो ऐसे बेतुके बयानों से मुरझा जाएं।निशिकांत दुबे ने वक्फ अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई करने के लिए शीर्ष अदालत पर निशाना साधते हुए कहा था कि “उच्चतम न्यायालय देश को अराजकता की ओर ले जा रहा है” और “देश में हो रहे गृहयुद्धों के लिए प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं”।

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पीठ ने पांच मई को दुबे के खिलाफ उनकी टिप्पणी को लेकर अवमानना कार्रवाई संबंधी याचिका पर सुनवाई की थी और कहा था कि संशोधित वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई उसने ही की थी। हालांकि पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन गुरुवार को उपलब्ध कराए गए अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय ने बीजेपी सांसद के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कीं।पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुबे के बयान भारत के उच्चतम न्यायालय के अधिकार को कमतर और बदनाम करने वाले हैं, या इस न्यायालय के समक्ष लंबित न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति रखते हैं।”

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पीठ ने कहा, “हमारी राय में, टिप्पणियां बेहद गैरजिम्मेदाराना थीं और भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों पर आक्षेप लगाकर ध्यान आकर्षित करने की प्रवृत्ति को दर्शाती हैं।शीर्ष अदालत ने कहा कि इन टिप्पणियों के जरिये न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने और बाधा डालने की प्रवृत्ति नजर आती है।इसमें कहा गया कि बयानों में प्रधान न्यायाधीश को “भारत में हो रहे सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार” बताते हुए पीठ पर आरोप लगाने की स्पष्ट मंशा को दर्शाया गया है और कहा गया है कि “इस देश में धार्मिक युद्धों को भड़काने के लिए केवल और केवल उच्चतम न्यायालय ही जिम्मेदार है।”

अदालत ने कहा कि सांसद की टिप्पणी संवैधानिक अदालतों की भूमिका और संविधान के तहत उन्हें सौंपे गए कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में उनकी अज्ञानता को दर्शाती है। आदेश में कहा गया है, “हम नहीं मानते कि इस तरह के बेतुके बयानों से जनता की नजरों में अदालतों के प्रति भरोसे और विश्वसनीयता को कोई झटका लग सकता है, हालांकि यह बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि ऐसा प्रयास जानबूझकर किया जा रहा है।पीठ के लिए फैसला लिख रहे प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई नहीं की लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि “सांप्रदायिक घृणा फैलाने’’ या ‘‘घृणास्पद भाषण देने के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटा जाना चाहिए’’।

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