Jagannath Rath Yatra: इतनी प्रसिद्ध क्यों है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, जानिए पूरी कहानी ?

Jagannath Rath Yatra: इन दिनों भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हर जगह एक चर्चित विषय है। Jagannath Rath Yatra आज से यानी 7 जुलाई से शुरु हो गई है। इस रथयात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं। प्रमुख मंदिर ओडिशा के पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है।

इस यात्रा के दौरान लोग भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बालभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के भव्य दर्शन करने आते हैं। कहते है कि इस रथयात्रा में भगवान के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदुओं में इस रथयात्रा का विशेष महत्व है। इस रथ यात्रा के पीछे हिंदू धर्म में बहुत सी कहानियां है, जिनकी वजह से यात्रा को निकाला जाता है। ओडिशा में इस यात्रा को बड़े ही धूमधाम और उत्साह से निकाला जाता है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

जानें क्या है Jagannath Rath Yatra का इतिहास ?

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को उत्साह और उमंग से भरे हुए एक त्यौहार के रूप में मनाते हैं। रथयात्रा का परंपरागत उद्देश्य है कि भक्त भगवान के रथ को खींचते हुए उनके दर्शन कर सकें और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। यह यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है, जिसे ‘रथयात्रा’ या ‘गुण्डिचा यात्रा’ के नाम से जाना जाता है।

मान्यताओं के अनुसार इसे मनाने के पीछे ऐसी कई कहानियां है जो इस Jagannath Rath Yatra के निकाले जाने की वजह हैं। इस पर्व की शुरुआत 12वीं से 16वीं सदी के बीच में हुई थी। इसकी मान्यताएं और कहानियां भी लोगों के अनुसार अलग-अलग हैं, कुछ लोग कहते हैं कि इसकी शुरुआत राजा इंद्रदयुम्न ने की थी, जिनको इस मंदिर निर्माण के लिए भगवान ने स्वप्न दिया था और जिन्होंने कई अनुष्ठान भी किए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि इस रथ यात्रा की शुरुआत गोकुल वासियों ने की थी, जब श्री कृष्ण के मामा कंस ने उन्हें मथुरा बुलाया और अपने मंत्री अक्रूर को लाने के लिए भेजा था तब गोकुल वासियों ने श्रीकृष्ण और बलराम को रथ पर बैठा कर विदा किया और तब से ही इस यात्रा की शुरुआत हुई थी। एक सुप्रसिद्ध मान्यता यह है कि एक बार श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा ने अपने भाईयों के साथ नगर घूमने की इच्छा जताई थी, बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए (श्री कृषण के रूप में) भगवान जगन्नाथ ने तीन रथ बनवाए और तीनों भाई-बहन नगर भ्रमण करने निकल गए। भ्रमण करते हुए वे अपनी मौसी के घर पहुंचे, जहां वे सात दिन रहे थे और तब से इस रथ यात्रा की शुरुआत हुई थी। इसीलिए हर साल इस रथ यात्रा को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर में क्या है ऐसा खास ?

भगवान जगन्नाथ का मंदिर भारत के चारों कोनों में स्थापित पवित्र मंदिरों में से एक है। भारत के दक्षिण में रामेश्वरम, पश्चिम में द्वारका और हिमालय की गोद में बद्रीनाथ मंदिर स्थापित है। भगवान जगन्नाथ के मंदिर को छोड़कर पूरे विश्व में ऐसा कोई मंदिर नहीं है जिसमें श्री कृष्ण, भाई बलराम और बहन सुभद्रा तीनों भाई-बहन की प्रतिमा एक साथ स्थापित हों। पुरी के जगन्नाथ मंदिर का चमत्कार भी विश्व प्रसिद्ध है। जिसमें से एक ये है कि इस मंदिर की चोटी के ऊपर से कभी कोई पक्षी या विमान उड़ता नहीं देखा गया है और दूसरा ये कि इस मंदिर का ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।

जानिए कैसे होता है रथ यात्रा का समापन ?

रथ यात्रा की शुरुआत तो बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ होती है, लेकिन इसके समापन के बारे में शायद ही कोई जानता होगा। इस रथ यात्रा की समाप्ति एक खास नाम के रिवाज से होती है जिसका नाम है ‘निलाद्री विजया’। इस रिवाज में जिन रथों में भगवान नगर भ्रमण करते हैं उन रथों को खंडित कर दिया जाता है। इन रथों को खंडित करने की वजह भी खास है। रथों को खंडित करना इस बात का प्रतीक होता है कि यह रथ यात्रा खत्म हो चुकी है और भगवान अपने मंदिर में पुन: विराजमान हो गए हैं। साथ ही यह वादा किया है कि वे अगले साल फिर आएंगे।

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