उच्चतम न्यायालय सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें उन्होंने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य घोषित करने का अनुरोध किया है जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी विवाद में कदाचार का दोषी पाया गया है।
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न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ इस याचिका पर सुनवाई कर सकती है। न्यायमूर्ति वर्मा ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की आठ मई की सिफारिश को भी रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें उन्होंने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था।
अपनी याचिका में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि जांच ने साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी बचाव पक्ष पर डाल दी, जिसके तहत उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच करने और उन्हें गलत साबित करने का भार उन पर डाल दिया गया है। न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति के निष्कर्ष पूर्वकल्पित आख्यान पर आधारित हैं, तथा कहा कि जांच की समय-सीमा केवल कार्यवाही को शीघ्रता से समाप्त करने की इच्छा से प्रेरित थी, चाहे इसके लिए “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता” की कीमत ही क्यों न चुकानी पड़ी हो।
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याचिका में तर्क दिया गया कि जांच समिति ने उन्हें पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला। घटना की जांच कर रही जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां आग लगने की घटना के बाद बड़ी मात्रा में आधी जली हुई नकदी मिली थी, जिससे उनका कदाचार साबित होता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।