Delhi: उच्चतम न्यायालय ने 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना के बारे में कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा चलाने पर लगी रोक की अवधि अगले साल 22 अप्रैल तक बढ़ा दी है।न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने गुरुवार को राहुल गांधी की अपील स्वीकार कर ली और कहा कि वे मामले की विस्तार से सुनवाई करेगी।Delhi:
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राहुल गांधी ने निचली अदालत के समन के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था लेकिन उच्च न्यायालय ने 29 मई को उनकी याचिका खारिज कर दी थी।इसके बाद गांधी ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।शीर्ष अदालत ने चार अगस्त को गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए लखनऊ की एक अदालत में लंबित इस मामले में आगे कोई कार्यवाही करने पर अगली सुनवाई तक के लिए रोक लगा दी थी। Delhi
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पीठ ने इससे पहले गांधी की कथित टिप्पणियों के बारे में उनसे सवाल किया था, “आपको कैसे पता कि भारत के 2,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर चीन ने कब्जा कर लिया है? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय जानकारी है?”पीठ ने कहा था, “बिना जानकारी के आपने ऐसे बयान क्यों दिए? अगर आप सच्चे भारतीय होते तो ऐसी चीजें न करते।”इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और इस मामले में शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर गांधी की याचिका पर जवाब मांगा था। Delhi:
गांधी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा था कि अगर नेता प्रतिपक्ष मुद्दे नहीं उठा सकते, तो ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी। सिंघवी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 का हवाला देते हुए कहा था कि अदालत द्वारा आपराधिक शिकायत का संज्ञान लेने से पहले अभियुक्त की पूर्व सुनवाई अनिवार्य है, जो वर्तमान मामले में नहीं की गई। Delhi:
शिकायतकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव ने एक अदालत में दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि दिसंबर 2022 की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान गांधी ने चीन के साथ सीमा गतिरोध के संदर्भ में भारतीय सेना के बारे में कई अपमानजनक टिप्पणियां कीं। इसके बाद अधीनस्थ अदालत ने गांधी को मुकदमे का सामना करने के लिए अभियुक्त के रूप में तलब किया।गांधी के वकील प्रांशु अग्रवाल ने दलील दी थी कि शिकायत को पढ़ने से ही आरोप मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं। उन्होंने ये भी दलील दी थी कि गांधी लखनऊ के निवासी नहीं हैं, इसलिए उन्हें इस शिकायत पर समन करने से पहले अधीनस्थ अदालत को आरोपों की सत्यता की जांच करनी चाहिए थी और उन्हें तभी समन किया जाना चाहिए था जब आरोप प्रथम दृष्टया मुकदमे के योग्य पाए जाते।Delhi:
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