Women, Constitution and Law: सावित्री ठाकुर, केंद्रीय राज्य मंत्री, महिला एवं बाल विकास ने आज भारतीय विधि एवं राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महिलाओं की अनिवार्य भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने शासन और नीति-निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सशक्त संस्थागत ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि लैंगिक न्याय केवल एक आकांक्षा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जिसे प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए।
श्रीमती ठाकुर ने संसद भवन में संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (ICPS) द्वारा आयोजित “महिला, संविधान और क़ानून: प्रतिनिधित्व, अधिकार और सुधार” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी में ये विचार प्रकट किये । इस कार्यक्रम में नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, वीर नारियों (युद्ध विधवाओं) और जमीनी स्तर की महिला नेताओं ने भाग लिया और भारत के संवैधानिक एवं विधिक ढांचे में महिलाओं की बदलती भूमिका पर विचार-विमर्श किया।संगोष्ठी में महिलाओं के संवैधानिक और विधिक प्रतिनिधित्व से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए।
संगोष्ठी में 180 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें वीर नारियां (युद्ध विधवाएं), ग्राम पंचायत और शहरी निकायों के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, शोधार्थी, छात्र और मंत्रालयों के अधिकारी शामिल थे। इस विविध भागीदारी ने शासन में लैंगिक न्याय को सुदृढ़ करने की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाया।
इस संगोष्ठी ने महिला प्रतिनिधित्व, विधिक अधिकारों और शासन सुधारों पर सार्थक चर्चा के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान किया। इसने भारत के संवैधानिक ढांचे में लैंगिक न्याय को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता को पुनः पुष्टि की, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएं देश के विधिक और राजनीतिक भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।