(प्रदीप कुमार): संसदीय समिति ने कोरोना की दूसरी लहर के हालात की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगा पाने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है।संसदीय समिति ने सरकार को कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी से हुई मौतों का ऑडिट कराने को कहा है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान अगर रोकथाम रणनीतियों को समय पर लागू किया जाता तो बहुत सारे लोगों की जान बचाई जा सकती थी। स्वास्थ्य मामलों से संबंधित एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
इसके साथ ही संसदीय समिति ने हालात की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगा पाने के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पहली लहर के बाद जब देश में कोविड-19 के मामलों में गिरावट दर्ज की गई, तब सरकार को देश में महामारी के दोबारा जोर पकड़ने के खतरे और इसके संभावित प्रकोप पर नजर रखने के अपने प्रयास जारी रखने चाहिए थे।
संसदीय समिति ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को सतर्कता बनाए रखने और अपने संबंधित क्षेत्रों में कोविड-19 के दोबारा फैलने से पैदा होने वाली किसी भी इमरजेंसी स्थिति के लिए रणनीति तैयार करने का निर्देश दिया था, संसदीय समिति ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को, खासकर कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ‘‘ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई मौत’’ के मामलों की राज्यों के तालमेल से ऑडिट करने की सिफारिश की है, ताकि मौत के मामलों का सही दस्तावेजीकरण हो सके।
रिपोर्ट में कहा गया है, “समिति इस बात से नाखुश है कि कई राज्य दूसरी लहर के दौरान पैदा हुईं अनिश्चितताओं और इमरजेंसी हेल्थ स्थितियों से निपटने में असमर्थ रहे, जिसके चलते पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हुई।” समिति ने राज्यसभा में पेश 137वीं रिपोर्ट में कहा कि दूसरी लहर में निस्संदेह संक्रमण और मौत के बढ़ते मामलों में वृद्धि, अस्पतालों में ऑक्सीजन और बिस्तरों की कमी, दवाओं और अन्य महत्वपूर्ण चीजों की सप्लाई का अभाव, जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान, ऑक्सीजन सिलेंडर व दवाओं की जमाखोरी और कालाबाजारी आदि देखी गई”
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “संसदीय समिति का विचार है कि यदि सरकार शुरुआती चरण में ही वायरस के ज्यादा संक्रामक स्वरूप की पहचान कर पाती और रोकथाम रणनीति को सही तरीके से लागू किया जाता तो नतीजे कम गंभीर होते और कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी।” समिति ने पाया कि भारत दुनिया में कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में शामिल रहा।देश की विशाल आबादी के कारण महामारी के दौरान बड़ी चुनौती पेश आई।
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संसदीय समिति ने कहा कि लचर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी के कारण देश में जबरदस्त दबाव देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार कोविड-19 महामारी और इसकी लहरों के संभावित जोखिम का सटीक अनुमान नहीं लगा पाई।समिति ने कहा कि पहली लहर के बाद जब देश में कोविड-19 के मामलों में गिरावट दर्ज की गई, तब सरकार को देश में महामारी के दोबारा जोर पकड़ने के खतरे और इसके संभावित प्रकोप पर नजर रखने के अपने प्रयास जारी रखने चाहिए थे।
संसदीय रिपोर्ट ने कहा गया कि वह सरकारी एजेंसी से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद करती है, समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि वह दुनिया के अन्य देशों से कोविड-19 की उत्पत्ति की पहचान करने के लिए और अधिक रिसर्च करे और साथ ही लापरवाही के लिए जिम्मेदार पाए जाने वालों को दंडित करें।
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