Engineer’s Day 2024: दुनिया बदलने वाले इंजीनियर्स को याद कर रहे लोग, जानें कौन थे देश के पहले सिविल इंजीनियर ?

Engineer's Day 2024

Engineer’s Day 2024: आज के आधुनिक युग में एक से एक इमारतें, ब्रिज, सड़क और तमाम कंस्ट्रक्शन के काम देखने को मिल रहे हैं, जिन्हें देखते ही आखें खुली की खुली रह जाती हैं और दांतों तले उंगली दबाने को लोग मजबूर हो जाते हैं। जैसे- दुबई की बुर्ज खलीफा इमारत, चिनाब नदी पर बना रेलवे ब्रिज,  सरदार पटेल की स्टेच्यू ऑफ यूनिटी, राम मंदिर समेत भारत के कई अनूठे मंदिर, कंप्यूटर, मोबाइल, ड्रोन, हवाई जहाज इत्यादि। ये सब इंजीनियर्स की सोच और हाथों का कमाल है जिसकी वजह से आज दुनिया की तस्वीर बदल गई है। इन्हीं इंजीनियर्स की मेहनत के बदौलत आज लोग आसमान छू रहे हैं। सभी इंजीनियर्स (Engineer’s) के काम को सलाम करने के लिए और उनको सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस  (Engineer’s Day) मनाया जाता है।

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जब भी हम कहीं बाहर घूमने का प्लान बनाते हैं तो हमें जानना होता है कि जिस रास्ते से हमें जाना है कहीं वो खस्ताहाल तो नहीं और एक अच्छे रूट के जरिए टूर करना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी सहूलियत के लिए इंजीनियर्स कितनी मेहनत करते हैं। अगर रास्ता अच्छा मिल जाए तो हम सड़क की प्रशंसा करते हैं, लेकिन उसको बनाने वाले इंजीनियर (Engineer’s) का धन्यवाद करना भूल जाते हैं, इसीलिए हर 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस  (Engineer’s) मनाते हैं।

15 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है इंजीनियर दिवस ?

भारत के पहले सिविल इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के कोलार जिले में हुआ था। इनके कामों और योगदान को याद करने के लिए यह खास दिन मनाया जाता है। इसका मुख्य मकसद ये भी था कि भावी इंजीनियर का सम्मान किया जाए और इंजीनियर की महत्ता लोगों को समझाई जाए।

भारत के पहले सिविल इंजीनियर थे सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया 

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के  पहले सिविल इंजीनियर तो थे ही , साथ-साथ वे एक विद्वान और राजनेता भी थे। उन्हें एमवी और एम. विश्वेश्वरैया के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन इंजीनियरिंग को ही समर्पित कर दिया था। 1911 में इन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर’ की उपाधि दी गई। इनके अद्भुत कामों की वजह से इन्हें सर की भी उपाधि दी गई।

बता दें, भारत के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसके कारण 1955 में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 14 अप्रैल 1962 को भारतवासियों के साथ-साथ विदेशियों के आंखें भी नम हो गई, जब ये हम सब को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। 1968 में पहली बार उनकी याद में इंजीनियर दिवस मनाया गया था। उसके बाद यह दिन हर साल 15 सितंबर को मनाया जाता है।

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एम. विश्वेश्वरैया के योगदान

भारत के विकास में विश्वेश्वरैया की भूमिका अहम रही है, चाहे वो सिंचाई की व्यवस्था करना हो या फिर शिक्षा का क्षेत्र रहा हो।

कृष्णा राजा सागर बांध– इनके नेतृत्व में कावेरी नदी पर बना कृष्णा राजा सागर बांध उस समय के सबसे बड़े जलाशयों में से एक है। आज भी बहुत से लोगों की कृषि और जल की आपूर्ति इसी बांध की सहयता से होती है। इसको विश्वेश्वरैया के मिसाल कामों में से एक माना जाता है।

स्टील के दरवाजे- ब्रिटिश काल में तत्कालीन सरकार सिंचाई व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए कोई उपाय ढूंढ़ रही थी। काफी खोज करने के बाद भी उन्हें कोई अच्छा उपाय नहीं मिल पाया। इंजीनियर होने के नाते यह काम विश्वेश्वरैया को सौंप दिया गया। उन्होंने स्टील के दरवाजों का निर्माण किया, जिससे व्यवस्था काफी अच्छे से हो गई थी। यह उपाय अब भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि दूसरे देशों में भी अब इस उपाय को अपनाया जाता है।

शिक्षा क्षेत्र में योगदान- इनका योगदान केवल इंजीनियर के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इन्होंने लोगों को शिक्षित करने के लिए भी कदम उठाए। इनका मानना था कि गरीबी का बड़ा कारण शिक्षा का अभाव भी है। इन्होंने मैसूर में स्कूलों की संख्या 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दी थी। लड़कियों के लिए अलग से हॉस्टल और पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज खुलवाने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। मैसूर विश्वविद्यालय की शुरुआत भी इन्होंने ही की थी।

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