हिंदू धर्म में वैसे तो बहुत से त्यौहार है। लेकिन सभी त्यौहार मौसम या उत्सव से जुड़े हुए है। हिंदू धर्म में सभी त्योहारों का अपना एक अलग महत्व है। जिसमे कुछ ऐसे त्यौहार जो किसी विशेष जाति समुदाय से जुड़े होते है तो वहीं कुछ त्यौहार हमारी प्रकति से जुड़े हुए होते हैं। जिसमे हम किसी मूर्ति या आकार की पूजा नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा करते है। आज हम ऐसे ही विशेष त्यौहार के बारे में बताने जा रहें है जो हमारी प्रकृति से जुड़ा है। जिसे छठ पर्व के नाम से जाना जाता है। छठ पर्व को विशेषकर बिहार और उत्तरप्रदेश के लोग श्रद्धा के साथ मनाते है। छठ को बिहार का लोकपर्व भी कहा जाता है। आज के समय में छठ का पर्व सिर्फ यूपी बिहार तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब ये देश के साथ विदेशों में भी प्रचलित हो गया है। शहर हो या गांव कोई भी इस व्रत से अछूता नहीं है। इस पर्व को लेकर लोगों के अंदर काफी उत्साह नजर आता है। लोग अपने आसपास के तालाब, नदी व अन्य गड्ढों की साफ सफाई करते है।
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। आइये जानते है कैसे शुरुआत हुई महापर्व छठ की। हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। जिसके तहत रीति रिवाज के साथ महिलाएं सूर्य को अर्घ देकर मनोकामना को पूरा करने के लिए सूर्य देवता से प्रार्थना करती है।
इतना ही नहीं द्रोपदी ने भी किया था छठ का व्रत
जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
इस व्रत में साफ-सफाई के साथ प्रकृति से जुड़े सभी सामानों का उपयोग पूजा के रुप में किया जाता है। प्रसाद बनाते वक्त साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। बता दें व्रत की शुरुआत नहाए खाय से होती है वहीं व्रत के दूसरे दिन व्रती अपने घाट की पूजा करती है। और शाम को खीर और रोटी बनायी जाती है। जिसे खरना कहा जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करती हैं। कार्तिक मास की षष्ठी को ये पर्व मनाया जाता है। छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार की भाषा में छठी मइया कहकर पुकारते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान जिस देवी की पूजा की जाती है वों सूर्य भगवान की बहन है। इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ देकर छठ मैया को खुश करते है।
शाम को प्रसाद के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार सात, ग्यारह, इक्कीस व इक्यावन प्रकार के फल-सब्जियों और अन्य पकवानों को बांस की डलिया में लेकर व्रती महिला के पति या फिर पुत्र नदी या तालाब के किनारे जाते है। नदी और तालाब की तरफ जाते समय महिलाएं समूह में छठी माता के गीतों का गान करती है। घाट सूंदर तरीके से सजाए होते है। व्रती महिलाएं पूजा- पाठ करती है और ढ़लते हुए सूर्य देव को नमस्कार करती है। नदी और तालाब के किनारे लगे हुए मेले का सभी आनंद उठाते है यह देखने में बहुत ही सुंदर और रोचक लगता है ऐसा लगता है कि मानो दीपावली का त्यौहार वापस लौट आया हो। और अगले दिन मान्यता के अनुसार अगले दिन उगते हुए सूर्य को भोर में अर्घ दिया जाट यही। व्रती महिला ,मांग में लंबा सिंदूर भरकर घाट के ठंडे पानी में खड़े होकर श्रृद्धा के साथ सुरव्य देव को अर्घ देती है। प्रसाद के रूप में इस दिन ठेकुआ जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते है और चावल के लड्डू, रोटी बनाई जाती है। फलों के साथ ठेकुआ के प्रसाद को दिया जाता है।
Read also:कम उम्र में भी घुटनों के दर्द से है परेशान, तो इन उपायों से पा सकते है रिलीफ
छठ पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में छठ पूजा का महत्व काफी अधिक है व्रती महिला पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के साथ सुख समृद्धि की कामना के लिए ये व्रत करती है।
चार दिन तक चलने वाले इस त्यौहार से रौनक बनी रहती है।
यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है दिवाली के बाद इस त्यौहार से रौनक बनी रहती है। आस पास के सभी परिवार इसमें शामिल होते है।
Top Hindi News, Latest News Updates, Delhi Updates,Haryana News, click on Delhi Facebook, Delhi twitter and Also Haryana Facebook, Haryana Twitter.

