Lok Sabha: एक लोकसभा सीट के लिए दो सांसद! जानें संविधान लागू होने से पहले का नियम

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Lok Sabha Election: 2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में अब कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। 19 अप्रैल को पहले चरण के लोकसभा चुनाव में मतदान होगा। 7 चरणों में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। आखिरी दिन 1 जून को मतदान होगा और सभी के नतीजे 4 जून को घोषित कर दिए जाएंगे। अब ऐसे राजनीतिक पार्टियों ने लगभग अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में लगे हैं। इस चुनाव में प्रत्येक सीट पर जीत दर्ज करने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। लेकिन चुनावी गहमागहमी में बहुत कम लोगों को पता होगा कि पहले दो आम चुनावों में कुछ सीटों पर दो-दो सांसद चुने गए थे।

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दरअसल, 1961 में एक अधिनियम ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया था। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद मार्च 1950 में सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने। कुछ दिनों बाद, संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया, जिसमें ये बताया गया कि विधानसभाओं और संसदों के चुनावों कैसे होंगे?


लोकसभा के पहले आम चुनाव में कुल 489 सीटें उपलब्ध थीं। ये सीटें 401 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित हुईं। 1951 और 1952 के बीच देश के पहले आम चुनाव में, 489 सीटों में से 314 में एक सांसद चुना गया। फिर भी, 86 सीटों में से दो-दो सांसद चुने गए। इनमें से एक अनुसूचित जाति या जनजाति और एक सामान्य श्रेणी से चुना गया था। 1951 में उत्तर प्रदेश की 17 सीटें सबसे अधिक दो सांसदों वाली थीं। इसके बाद मद्रास में 13 सीटें, बिहार में 11 सीटें, बॉम्बे में 8 सीटें और मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में छह-छह सीटें थीं। पश्चिम बंगाल में भी एक सीट से तीन सांसद चुने गए।

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जिस व्यवस्था के तहत दो या तीन सांसदों को एक सीट से चुना गया था, वह समाज के वंचित वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए बनाया गया था।
1957 में देश में दूसरे लोकसभा चुनाव हुए थे। राज्यों को फिर से बनाया गया था। 1957 में कुल 494 लोकसभा सीटें थीं। ये सीटें 401 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित हुईं। इस बार 91 सीटों पर दो-दो सांसद चुने गए। यूपी में सबसे अधिक 18 सीटें थीं, जिसमें दो सांसद थे। वहीं आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, बॉम्बे और मद्रास में आठ-आठ सीट, मद्रास में सात, ओडिशा में छह और पंजाब में पांच सीट थीं।


दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था बहुत आलोचित हुई। उस समय अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटें एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में होनी चाहिए। माना गया कि दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र असुविधाजनक और बोझिल हैं। 1961 के दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र (उन्मूलन) अधिनियम ने अंततः इस प्रणाली को समाप्त कर दिया। वहीं, 1962 के लोकसभा चुनाव में एकल व्यवस्था लागू की गई, जो आज तक लागू है। यानी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही सांसद चुना जाएगा।

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