उत्तराखंड में बसा जोशीमठ शहर भू धसांव के कारण इन दिनों काफी चर्चा में है। लेकिन हमे इसके बारे में और जानने की जरूरत है की ऐसा क्या है वहां पर की आज जोशीमठ ध्वस्त होने की कगार पर है और वहां रहने वाले लोग ऐसी भयानक प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे हैं। यहां के लोगो को डर है की उनका शहर डूब रहा है और आने वाले भविष्य में इसका आस्तित्व खत्म हो जाएगा। वहीं विशेषज्ञों ने इस विषय पर कहा है की जोशीमठ में हो रहे प्राकृतिक आपदा के पीछे मानवीय कारक है। जैसे की ढीले चट्टान वाले नाजुक पहाड़ी इलाकों पर बेतरतीब निर्माण, जल उपसतह का रिसाव, ऊपरी मिट्टी का क्षरण, और मानव निर्मित कारकों के कारण स्थानीय धाराएँ अपना मार्ग बदल रही हैं जो उनके प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम स्थल विष्णुप्रयाग के दक्षिण-पश्चिम में एक पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर स्थित यह शहर भूगर्भीय रूप से काफी संवेदनशील है।
हिमालय पर्वत पर त्रिशूल शिखर से उतरती ढाल पर, संकरी जगह पर अलकनंदा के बांयें किनारे पर जोशीमठ स्थित है। जोशीमठ से सामने आ रही मकानों की दरारें की वीडियो और फोटो काफी विचलित कर देने वाली है। जोशीमठ शहर प्राकृतिक सौंदर्य में उत्तम होने के साथ साथ उसका अपना एक अलग धार्मिक महत्व भी है। आपको बता दें त्रिशूल पर्वत समुद्रतल से लगभग 23490 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमालय की तीन चोटियों का एक समूह है। तीनो चोटियां आपस में जुड़े होने के कारण त्रिशूल की तरह प्रतीत होती है। जिस कारण इसे त्रिशूल पर्वत की संज्ञा दी गयी है। उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ हिन्दुओं की प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ है।
जोशीमठ को बद्रीनाथ और हेमकुंड साहेब के पवित्र मंदिरों और फूलों की सुरम्य घाटी और औली का प्रवेश द्वार कहा जाता है। जोशीमठ के भूगोलीय दशा की बात की जाए तो यह क्षेत्र भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के जोन V में आता है और विशेष रूप से भूस्खलन की चपेट में है। प्राकृतिक दृष्टि से जोशीमठ काफी संवेदनशील क्षेत्र है।
जैसा की हर मंदिर का एक रहस्य होता है ठीक उसी तरह जोशीमठ से भी जुड़ी हुई बहुत गहरे रहस्य है। एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है की जोशीमठ को आदि शंकराचार्य ने बसाया था। आदि शंकराचार्य को यही पर ज्ञान की प्राप्ती हुई थी और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की। जोशीमठ से आम लोगो की गहरी अध्यात्मकता जुड़ी हुई है। जो इसके महत्व को और बढ़ा देती है। वहीं इसकी एक और मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि प्रारंभ में जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में था तथा जब यहां पहाड़ उदित हुए तो वह नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि बनी।
Read also: इसरो ने जारी की जोशीमठ की सैटेलाइट तस्वीरे, कर देंगी विचलित
कहा जाता है की आदि शंकराचार्य अपने 109 शिष्यों के साथ जोशीमठ आये तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था। उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए। जोशीमठ वासियों में से कई उस समय के अपने पूर्वजों की संतान मानते हैं जब दक्षिण भारत से कई नंबूद्रि ब्राह्मण परिवार यहां आकर बस गए तथा यहां के लोगों के साथ शादी-विवाह रचा लिया। जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे जो बहुसंख्यक प्राचीन एवं उपास्य मंदिरों में कार्यरत थे तथा वेदों एवं संस्कृत के विद्वान थे।
नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे। उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया। वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है।
Top Hindi News, Latest News Updates, Delhi Updates,Haryana News, click on Delhi Facebook, Delhi twitter and Also Haryana Facebook, Haryana Twitter. Total Tv App
