Kumbh Mela 2025: महाकुंभ में लगा साधु संतों का जमावड़ा, आकर्षण का केंद्र बन रहे जटाधारी संत

Kumbh Mela 2025:

Kumbh Mela 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ में श्रद्धालु विभिन्न अखाड़ों या धार्मिक संप्रदायों के साधुओं का आशीर्वाद लेने और उनके दर्शन करने के लिए उमड़ रहे हैं।महाकुंभ में लाखों साधु-संतों का अलग अंदाज दिख रहा है। एक साधु पिछले नौ साल से अपना एक हाथ ऊपर उठाए हुए हैं तो वहीं एक साधु अपने सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं। महाकुंभ में आए एक साधु ऐसे भी हैं जो अपने सिर पर जौ उगाते हैं।सवा लाख रुद्राक्ष बाबा अपने सिर पर 30 किलो अद्भुत रुद्राक्ष धारण किए हुए है। माना जाता है कि रुद्राक्ष में दैवीय गुण होते हैं। इसे भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। बाबा का असली नाम गीतानंद गिरी है। उन्होंने छह साल पहले अर्ध कुंभ में सवा लाख रुद्राक्ष की माला पहनने का संकल्प लिया था।

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महाकुंभ के लिए प्रयागराज में मौजूद महंत महाकाल गिरि महाराज ने कहा कि उन्होंने अपने गहन ध्यान और आध्यात्मिक अनुशासन के तहत पिछले नौ वर्षों से अपना बायां हाथ ऊपर उठा रखा है।महाकुंभ में चाबी वाले बाबा भी हैं। उत्तर प्रदेश के रायबरेली से आए 50 साल के साधु 15 किलो से ज्यादा वजन की एक बड़ी चाबी लेकर चलते हैं। उनका असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है। वे बताते हैं कि बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्म की ओर था। बाबा का रथ चाबियों से भरा हुआ है, जो एक नए आध्यात्मिक युग का संदेश साझा करने के उनके मिशन का प्रतीक है। वे अपने रथ को हाथ से खींचते हुए पैदल ही पूरे भारत की यात्रा करते हैं।महाकुंभ में शामिल होने वाली प्रमुख हस्तियों में जापान की प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता योगमाता कीको ऐकावा भी शामिल हैं। उन्हें हिंदू धर्म में प्रतिष्ठित आध्यात्मिक पद महामंडलेश्वर की उपाधि पाने वाली पहली विदेशी महिला होने का गौरव हासिल है। महाकुंभ मेले में कई बार शामिल होने के बाद योगमाता ने संयुक्त राष्ट्र जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर भी अपने विचार साझा किए हैं।

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‘शिवलिंग वाले बाबा’ एक नागा साधु हैं। वे अपनी अटूट भक्ति के प्रतीक के रूप में अपने सिर पर शिवलिंग रखते हैं। उन्होंने अपनी गहरी आस्था को दिखाते हुए महाकुंभ खत्म होने तक ‘रुद्राक्ष’ से बने शिवलिंग को अपने साथ रखने का संकल्प लिया है।प्रयागराज महाकुंभ में एक और बाबा सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। ये हैं ‘खडेश्वर’ बाबा। वे पिछले छह साल से खड़े हैं और कहते हैं कि ये दूसरों की भलाई के लिए किया गया व्रत है। खुद को सहारा देने के लिए उन्होंने एक झूला बनाया है, जिससे वे अपनी भक्ति के अनोखे रूप को बरकरार रख रहे हैं।

जूना अखाड़े के सदस्य महंत राजपुरी जी महाराज को ‘कबूतर वाले बाबा’ के नाम से जाना जाता है। वे पिछले नौ साल से अपने सिर पर कबूतर लेकर चलते हैं। ‘कबूतर वाले बाबा’ अपने कबूतर की वजह से श्रद्धालुओं का खूब ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। वे अपने कबूतर को प्यार से हरि पुरी कह कर बुलाते हैं

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