महाकुंभ का पहला ‘अमृत स्नान’, 1.6 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने ‘मकर संक्रांति’ पर लगाई पवित्र डुबकी

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Makar Sankranti: महाकुम्भ 2025 के प्रथम अमृत स्नान के दौरान नागा साधुओं का अद्भुत प्रदर्शन श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना। त्रिवेणी तट पर इन साधुओं की पारंपरिक और अद्वितीय गतिविधियों ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

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बता दें, अमृत स्नान के लिए ज्यादातर अखाड़ों का नेतृत्व कर रहे इन नागा साधुओं का अनुशासन और उनका पारंपरिक शस्त्र कौशल देखने लायक था। कभी डमरू बजाते हुए तो कभी भाले और तलवारें लहराते हुए, इन साधुओं ने युद्ध कला का अद्भुत प्रदर्शन किया। लाठियां भांजने का प्रदर्शन करते हुए ये साधु अपनी परंपरा और जोश का प्रदर्शन कर रहे थे।

अमृत स्नान के लिए निकली अखाड़ों की शोभा यात्रा में कुछ नागा साधु घोड़ों पर सवार थे तो कुछ पैदल चलते हुए अपनी विशिष्ट वेशभूषा और आभूषणों से सजे हुए थे। जटाओं में फूल, फूलों की मालाएं और त्रिशूल हवा में लहराते हुए उन्होंने महाकुम्भ की भव्यता को और भी बढ़ा दिया। स्व-अनुशासन में रहने वाले ये साधु शीर्ष पदाधिकारियों के आदेशों का पालन करते हुए आगे बढ़े। नगाड़ों की गूंज के बीच उनके जोश ने इस अवसर को और भी खास बना दिया। त्रिशूल और डमरू के साथ उनके प्रदर्शन ने यह संदेश दिया कि महाकुम्भ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के मिलन का उत्सव है।

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शोभायात्रा के दौरान मीडिया ही नहीं, बल्कि आम श्रद्धालु भी इन दृश्यों को अपने मोबाइल कैमरों में कैद कर रहे थे। नागा साधु इस दौरान नगाड़ों की ताल पर नृत्य करते हुए अपनी परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी कर रहे थे। स्नान के दौरान भी नागा साधुओं का अंदाज निराला था। त्रिवेणी संगम में उन्होंने पूरे जोश के साथ प्रवेश किया और बर्फ के समान पानी के साथ ऐसे अठखेलियां कीं जैसे ठंडे पानी से उन्हें कोई भी कठिनाई नहीं हो रही हो। पुरुष नागा साधुओं के साथ ही महिला नागा संन्यासियों की भी बड़ी संख्या में मौजूदगी रही। महिला नागा संन्यासी भी पुरुष साधुओं की तरह तप और योग में लीन रहती हैं। वे गेरुआ वस्त्र धारत करती हैं जो बिना सिला हुआ होता है। उन्हें भी परिवार से अलग होना पड़ता है, खुद के साथ परिवार के लोगों का पिंड दान करना होता है और तब जाकर कोई महिला नागा संन्यासी बन पाती हैं।

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