Operation Sindoor: भारत ने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था। पहलगाम हमले में 26 लोग मारे गए थे।
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न्यूज एजेंसी पीटीआई ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर एक अग्रिम चौकी का दौरा किया और देखा कि कैसे भारतीय सेना ने इस रणनैतिक ऑपरेशन को अंजाम दिया और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। तोप से सटीक गोले दागकर आतंकवादी ठिकानों को बेअसर कर दिया गया, जिसमें मध्यम श्रेणी की तोपों ने आक्रामक भूमिका निभाई। सैन्य अभियानों के दौरान तोपों की अहम भूमिका होती है, जो जमीनी बलों को जरूरी सपोर्ट मुहैया कराती है। अग्रिम चौकी पर भारतीय सेना के एक जवान ने तोप से जुड़े ऑपरेशन के महत्व के बारे में बताया।
एक सैनिक ने कहा कि हम भारतीय सेना के गनर हैं। ये वही तोप है जिसने आतंकवादियों के ठिकानों पर भारी बमबारी की और उनके मनोबल को कमजोर कर दिया। तोप को ‘गॉड ऑफ वॉर’ कहा जाता है क्योंकि जहां भी इसका गोला गिरता है, दुश्मन के बीच अफरा-तफरी मच जाती है। दुश्मन ऑपरेशन सिंदूर को जीवन भर याद रखेगा और ऐसी कायरतापूर्ण हरकतें दोहराने से पहले लाखों बार सोचेगा। मिशन की रणनैतिक गहराई को के बारे में एक और सैनिक ने बताया, उन्होंने गोली चलाई, लेकिन हमने धमाका किया। उन्होंने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी; ये एक सुनियोजित, टारगेट ओरिएंटेड हमला था। हमने मानसिक, तार्किक और शारीरिक रूप से खुद को तैयार किया था। हमारे पास भारत में बने अत्याधुनिक रडार, अगली पीढ़ी के उपकरण थे, लेकिन सबसे बढ़कर, हमारे पास हमारे सैनिकों का जुनून था।
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सेना ने ये भी पक्का किया कि सीमा पार के नागरिक क्षेत्रों को निशाना न बनाया जाए और घुसपैठ में मदद करने वाले आतंकवाद से जुड़े बुनियादी ढांचे और सैन्य ठिकानों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा, हमारा लक्ष्य उनके आतंकवादी बुनियादी ढांचे को नष्ट करना था, लेकिन जब उन्होंने हमारे नागरिक और सैन्य क्षेत्रों को निशाना बनाना शुरू किया, तो हमने उनकी चौकियों पर हमला करने का संकल्प लिया। हर राउंड की गोलीबारी उनकी गोलीबारी का जवाब थी, लेकिन हमने उनके किसी भी नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना नहीं बनाया। जम्मू में हाल ही में हुई गोलाबारी और ड्रोन हमलों में 27 लोग मारे गए और 70 से ज्यादा घायल हो गए। हजारों लोग नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्रों से भागकर सरकारी राहत शिविरों में शरण लेने के लिए चले गए हैं।