Prime Minister Narendra Modi : पीएम मोदी ने दिल्ली के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र (एनएएससी) परिसर में कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया।कार्यक्रम में पीएम मोदी के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद रहे।इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया
पीएम मोदी ने कहा कि भारत वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए समाधान ढूंढ रहा है। पीएम ने खुशी जताते हुए कहा कि कृषि अर्थशास्त्रियों का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आईसीएई 65 वर्षों के बाद भारत में हो रहा है। सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, बढ़ती उत्पादन लागत और संघर्ष जैसी वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर टिकाऊ कृषि की तत्काल आवश्यकता से निपटना है। सम्मेलन में लगभग 75 देशों के लगभग 1,000 प्रतिनिधि भाग ले रहे है।
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पीएम मोदी ने कहा कि आज फूड और न्यूट्रीशन को लेकर दुनियाभर में चिंता हो रही है, लेकिन हजारों साल पहले हमारे ग्रंथों में कहा गया है कि सभी पदार्थों में अन्न श्रेष्ठ है, इसलिए अन्न को सभी औषधियों का स्वरूप, उनका मूल कहा गया है. हमारे अन्न को औषधीय प्रभावों के साथ इस्तेमाल करने का पूरा आयुर्वेद विज्ञान है. ये पारंपरिक नॉलेज सिस्टम भारत के जीवन का हिस्सा हैपीएम मोदी ने कहा कि आज भारत एक फूड सरप्लस देश है।आज भारत दूध, दाल और मसालों का सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है।आज भारत फूड ग्रेन, फ्रूट्स, वेजिटेबल, कॉटन, शुगर, टी आदि का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। एक समय भारत की फूड सिक्योरिटी दुनिया का चिंता का विषय होती थी, आज का भारत ग्लोबल फूड सिक्योरिटी, ग्लोबल न्यूट्रीशन सिक्योरिटी के सॉल्यूशन देने में जुटा है।
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सम्मेलन में पीएम मोदी ने आगे कहा कि भारत ने बीते 10 सालों में जलवायु परिवर्तन के प्रति कम संवेदनशील फसलों की 1,900 नयी प्रजातियां प्रदान कीं।पीएम ने बताया कि हम पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने इस वर्ष के बजट में टिकाऊ और जलवायु अनुकूल खेती पर विशेष ध्यान दिए जाने के साथ-साथ भारत के किसानों को सहायता देने के लिए एक संपूर्ण इकोसिस्टम तंत्र विकसित करने का भी जिक्र किया। जलवायु-अनुकूल फसलों से संबंधित अनुसंधान और विकास पर सरकार के प्रयासों पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में किसानों को लगभग 1900 नई जलवायु-अनुकूल फसल की किस्में सौंपी गई हैं।