दिल्ली। (रिपोर्ट- विनय सिंह) दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ सड़क पर बैठने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आदेश सुरक्षित रख लिया है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की है कि लोगों के आने-जाने के अधिकार के साथ विरोध के अधिकार को संतुलित होना चाहिए। कोर्ट अपने फैसले में विवाद के मद्देनजर प्रदर्शन के अधिकारों पर फैसला सुनाएगा।
आपको बता दें, नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग पर सड़क पर धरना देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस के कौल ने कहा कि विरोध का अधिकार संपूर्ण नहीं है लेकिन फिर भी एक अधिकार है। संसदीय लोकतंत्र में हमेशा बहस का एक अवसर होता है। एकमात्र मुद्दा यह है कि इसे कैसे संतुलित किया जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि धरना खत्म हो चुका है। क्या याचिका वापस ले रहे हैं इस पर याचिकाकर्ताओं ने नहीं में जवाब दिया था।
इसके दूसरी ओर केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले मामले में किसी भी हस्तक्षेप अर्जी पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि लोग विरोध प्रदर्शन करने के पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकते, लेकिन उनका कहना है कि लोगों को शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया है कि भविष्य में इस तरह का विरोध जारी नहीं रहना चाहिए। बड़े जनहित में एक फैसला लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लंबित रखा जाए और विस्तृत आदेश दिया जाए।
इसके अलावा भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद व अन्य की ओर से महमूद प्राचा ने कहा कि अगर इस तरह का विरोध प्रदर्शन शांति के साथ हो रहा है तो कोई निर्देश जारी नहीं किया जाना चाहिए। विरोध करने का अधिकार एक पूर्ण अधिकार है। हमारी प्रस्तुतियां ये हैं कि इस धरने में राज्य मशीनरी का कथित रूप से दुरुपयोग किया गया था। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते ये धरना खत्म कर दिया गया था।
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