गोधरा कांड के पत्थरबाजों की ज़मानत का गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में किया विरोध

(अवैस उस्मानी): 2002 के गोधरा कांड में पत्थरबाजी करने वाले दोषियों की ज़मानत का गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने कहा कि पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है। गोधरा में ट्रेन की बोगी जलाए जाने से 59 कार सेवकों की मौत के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे।

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के सामने मामले की सुवनाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताते हुए कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है। पत्थरबाजी के चलते जलती हुई बोगी से पीड़ित बाहर नहीं निकल पाए थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर न निकल सके और बाहर से भी कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए न जा पाए।

मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि दोषी 17-18 साल से जेल में बंद हैं और कोर्ट पत्थर फेंकने के इन दोषियों को जमानत देने पर विचार कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से कुछ दोषी पत्थरबाज थे और वह जेल में लंबा समय काट चुके हैं। ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे और क्या कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 15 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में इन दोषियों की अपील 2018 से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 2002 गोधरा केस में 31 लोग उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।

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बता दें गुजरात हाई कोर्ट ने 2017 में 11 लोगों की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। इसके साथ ही 20 अन्य लोगों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए केस में 63 लोगों को बरी कर दिया गया था। बता दें गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की कोच में आग लगाए जाने से 59 हिंदुओं की जान चली गई थी, जिसमें 29 पुरुष, 22 महिलाएं और 8 बच्चे थे।

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