सुप्रीम कोर्ट दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी पर रोक लगाने संबंधी कानून की पड़ताल करेगा

Supreme Court: The Supreme Court will examine the law banning surrogacy for the second child.

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट इस बात की पड़ताल करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या द्वितीयक बांझपन का सामना कर रहे दंपतियों को दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने वाला कानून, नागरिकों के प्रजनन विकल्पों पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के समान है। सरोगेसी (किराये की कोख) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला (सरोगेट मां) किसी दूसरे जोड़े या व्यक्ति (इच्छुक माता-पिता) के बच्चे को जन्म देती है। द्वितीयक बांझपन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक या एक से अधिक बच्चों के सफल जन्म के बाद, दोबारा गर्भधारण करने या गर्भावस्था को पूर्ण करने में कठिनाई होती है।

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कोई भी इच्छुक दंपति, जिसके पास जैविक रूप से, गोद लेने के माध्यम से या पहले से सरोगेसी के जरिये कोई जीवित बच्चा है, दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ नहीं उठा सकता है। हालांकि यदि जीवित बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से दिव्यांग है या किसी जानलेवा विकार या घातक बीमारी से ग्रस्त है जिसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, तो दंपति जिला चिकित्सा बोर्ड से चिकित्सा प्रमाण-पत्र प्राप्त करने और उपयुक्त प्राधिकारी के अनुमोदन के बाद दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ उठा सकते हैं।

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न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने द्वितीयक बांझपन का सामना कर रहे एक दंपति की ओर से पेश वकील की दलील का संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा कि देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए इस प्रावधान के तहत लगाया गया प्रतिबंध ‘‘उचित’’ है। वकील ने दलील दी कि सरकार नागरिकों के निजी जीवन और प्रजनन संबंधी विकल्पों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती

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