Stone Mela : हिमाचल प्रदेश में दिवाली के एक दिन बाद शिमला जिले में पत्थर मेला मनाया गया। राजधानी शिमला से 26 किलोमीटर दूर धामी क्षेत्र के लोगों ने इस मेले को मनायागांव में मेले के दौरान दो टीमें बनाई जाती हैं। जो एक दूसरे पर पत्थर फेंकती हैं।ये ‘पत्थर मेला’ पिछले 300 सालों से हर साल दिवाली के बाद मनाया जाता है।परंपरा के मुताबिक, मेला तब तक चलता रहता है जब तक कोई शख्स घायल नहीं होता और उससे खून नहीं निकलता, उसके बाद ग्रामीण देवी काली के माथे पर उस घायल शख्स के खून से ‘तिलक’ लगाते हैं।
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नरसिम्हा पूजन से होती है कार्निवल की शुुरुआत- राज पुरोहित देविंदर भारद्वाज ने बताया कि ये कार्निवल तब शुरू हुआ जब धामी की रानी ने सती प्रथा से पहले मानव बलि को खत्म करा दिया था।कार्निवल की शुरुआत शाही परिवार के नरसिम्हा पूजन से होती है।नियमों के मुताबिक, केवल राज परिवार के जठोली, टुंडू और धगोई के ग्रुप और कटेडू परिवार के ग्रुप, जमोगी परिवार के सदस्य ही पत्थर मेले में भाग ले सकते हैं। इस मेले में महिलाएं भाग नहीं लेती हैं।
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देविंदर भारद्वाज, राज पुरोहित: राजदरबार प्रमुख जो होंगे, राजवंश से जो होंगे, उनसे हम पूजा करवाते हैं और उसके बाद मेले का प्रारंभ होता है। जो हमारे पास तीन सौ वर्ष की जो जानकारी है, मानव बलि को बंद करने के लिए महारानी जो सती हुई थी उनके द्वारा ये आदेश हुआ और उसके बाद ये मेला प्रारंभ इस रूप में किया गया कि मानव रक्त तो चढ़ेगा लेकिन बलि बंद हो जाएगी।”