World Suicide Prevention Day: दुनिया में तेजी से आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और कहीं न कहीं इसकी वजह लोगों की एक्पेक्टेशन्स हैं। आज बच्चे से लेकर बड़े तक सभी डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारी का शिकार हो रहे हैं। हर किसी के जीवन में अलग- अलग समस्याएं हैं। कई लोग अपने जीवन की समस्याओं से निपटने के लिए उनका सामना करने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन वहीं कुछ लोग इतने ज्यादा डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं कि उन्हें एक ही रास्ता दिखाई देता है और वो है खुदकुशी।
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खुदकुशी करने से सिर्फ इंसान के जीवन का अंत होता है न कि उसकी समस्याओं का अंत होता है। आत्महत्या के मामले केवल देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आए हैं। दुनिया में हर दिन न जाने कितने लोग आत्महत्या को अंजाम देते हैं। आज हमारी जिंदगी इतनी ज्यादा व्यस्त हो चुकी है कि हमारे पास एक- दूसरे के लिए समय ही नहीं है। शायद वैश्विक स्तर पर बढ़ रही आत्महत्याओं का सबसे बड़ा कारण यही है। इस डिजिटल युग में हमें खुद से ही फुर्सत नहीं मिलती है और इसी वजह से हम अपने आस पास के लोगों को न ही समझ पाते हैं और न ही उन्हें समझा पाते हैं।
क्या कंपैरिजन बन रहा है आत्महत्या की वजह ? अक्सर हमने देखा है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ कंपेयर करते रहते हैं जो कि बेहद गलत है। अगर कोई भी पेरेंट अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ कंपेयर करता है तो उस बच्चे का आत्मविश्वास खत्म होता है। उस दौरान बच्चे के मन में नाकामयाबी और भी बहुत से विचार आते हैं जिसकी वजह से वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में जरुरी होता है कि पेरेंट बच्चे को समझें और अपने बच्चे का किसी के साथ कंपेयर न करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं। अगर आप अपने बच्चे को सपोर्ट करेंगे और उसके फेलियर में भी उसके साथ खड़े रहेंगे तो आपका बच्चा हर काम को कर पाएगा और वह डिप्रेशन जैसी अवस्था का भी शिकार नहीं होगा
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आत्महत्या से कैसे करें बचाव? आत्महत्या के विचार आमतौर पर उस अवस्था में आते हैं जब कोई व्यक्ति अकेला महसूस करता है या फिर उसे कोई नहीं समझता है। ऐसी परिस्थिति में उस व्यक्ति के मन में बार बार इस तरह के विचार आते हैं इसलिए परिवारों वालों के लिए जरूरी है कि वह ऐसी अवस्था में उस व्यक्ति को समझें। परिवार के लोगों में रिश्ता इतना मजबूत हो कि किसी भी व्यक्ति के मन में इस तरह का ख्याल ही न आए। परिवार के लोगों को ऐसे व्यक्ति से खुलकर बात करनी चाहिए ताकि वह बता सके कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है।
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