Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन में नियम आधारित आचरण को लेकर सांसदों को कड़ी नसीहत दी है। सभापति ने कहा कि मैं इस सदन के माननीय सदस्यों से प्रोटोकॉल और नियमों का पालन करने का आग्रह करता हूं। किसी सदस्य द्वारा सभापति की अनुमति के बिना सदन को संबोधित करना बेहद अनुचित है। इस मामले में, माननीय सदस्य श्री जयराम रमेश का आचरण आपत्तिजनक है, क्योंकि उन्होंने अध्यक्ष की अनुमति के बिना अपनी सीट पर बैठे-बैठे ही उच्च संवैधानिक प्राधिकारी के खिलाफ अशोभनीय और अपमानजनक टिप्पणियां कीं। इससे सदन में अशांति हुई और व्यवधान पैदा हुआ। एक लंबे संसदीय और मंत्रिस्तरीय अनुभव वाले व्यक्ति द्वारा ऐसा आचरण दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को देखते हुए, मैं माननीय सदस्य से इस पर विचार करने और नियम आधारित आचरण का पालन करने का आग्रह करता हूं।
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दरअसल 22 जुलाई को राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस नेता जयराम रमेश के आचरण पर गंभीरता से संज्ञान लिया जब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने नियम 238 के संबंध में व्यवस्था का प्रश्न उठाया था। जयराम रमेश जो कि सभापति की अनुमति के बिना दूसरी कुर्सी पर बैठे थे, उच्च स्वर में संवैधानिक प्राधिकारी के खिलाफ अत्यधिक अपमानजनक और आपत्तिजनक टिप्पणियां करने लगे। उनकी इन टिप्पणियों को तत्काल प्रभाव से सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया। राज्यसभा के सभापति ने नियम 238(v) के तहत दिग्विजय सिंह द्वारा उठाए गए प्वाइंट ऑफ ऑर्डर को अवैध बताते हुए अस्वीकार कर दिया। जैसा कि नियम 238(v) में वर्णित है- कोई सदस्य सदन में बोलते समय निम्नलिखित कार्य नहीं करेगा।
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(v) उच्च प्राधिकारी व्यक्तियों के आचरण पर विचार-विमर्श, जब तक कि चर्चा उचित शर्तों में तैयार किए गए ठोस प्रस्ताव पर आधारित न हो।
स्पष्टीकरण:— “उच्च प्राधिकारी व्यक्ति” शब्द का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति हैं जिनके आचरण पर केवल संविधान द्वारा प्रस्तुत उचित शर्तों पर आधारित ठोस प्रस्ताव पर चर्चा की जा सकती है अथवा ऐसे अन्य व्यक्ति जिनके आचरण पर, अध्यक्ष की राय में, संविधान द्वारा निर्देशित किसी ठोस प्रस्ताव पर चर्चा की जानी चाहिए।”
अपने वक्तव्य में उन्होंने सदन का ध्यान एस.बी. चव्हाण के निर्देशों की ओर आकृष्ट करते हुए बताया कि 1998 में आचार समिति के प्रथम अध्यक्ष थे। इसके दिशा निर्देशों के तहत सदस्यों को ऐसा कुछ भी करने पर मनाही है जो संसद की गरिमा को कलंकित करता है तथा उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित करता हो। उन्होंने सभी सदस्यों से इस रिपोर्ट का अध्ययन करने और इसका पालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया जिससे कि वे इसके द्वारा निर्धारित मानकों को बनाए रखें और अपने अनुकरणीय आचरण से उदाहरण प्रस्तुत करें। सभापति जगदीप धनखड़ ने ये भी कहा कि पिछले 36 वर्षों में नियम 267 को केवल 6 अवसरों पर ही अनुमति दी गई है। इसके बावजूद, इसके निरंतर अंधाधुंध प्रयोग पर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है।
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