चिल्लई कलां के दौरान कश्मीर में लोग बर्फबारी, जमी हुई झीलें और कड़ाके की ठंड की उम्मीद करते हैं। आमतौर पर चिल्लई कलां के 40 दिनों के दौरान ऐसा ही होता है, जिसे घाटी में सर्दियों का सबसे मुश्किल दौर माना जाता है।
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हालांकि इस बार मैदानी इलाकों से आए पर्यटक निराश हैं। उन्हें यहां न तो जीरो से नीचे का तापमान मिला जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे और न ही बर्फबारी देखने को मिली। बर्फबारी का अनुभव किए बिना वापस नहीं लौटने का पक्का इरादा कर चुके, ज्यादातर सैलानियों ने गुलमर्ग और दूसरी ऊंची जगहों पर जाने की योजना बनाई है।
चिल्लई कलां 21 दिसंबर को हमेशा की तरह शुरू हुआ। लेकिन जो बात असामान्य रही, वो थी इसके आम संकेतों की कमी – न बर्फबारी, न हड्डियां कंपा देने वाली ठंड, न जमे हुए पानी के पाइप और न ही सैलानियों की भारी भीड़। स्थानीय लोग और पर्यटकों दोनों को उम्मीद है कि हालात जल्द ही बेहतर होंगे। तब तक, वे केवल इंतजार ही कर सकते हैं।
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