Darknet: नीट के बाद अब देश भर में UGC नेट का पेपर लीक होने पर आक्रोश है। लेकिन आप जानते हैं कि डार्क नेट पर पेपर लीक कैसे होता है और इसके पीछे किसका हाथ है? छात्र प्रत्येक परीक्षा की तैयारी करने के लिए एक साल (यानी 365 दिन), दो साल (यानी 730 दिन) या इससे अधिक समय लेते हैं। लेकिन पेपर लीक करने के चंद घंटों में उनके संघर्ष, सालों की तैयारी बेकार हो जाती है। छात्रों का भविष्य भी डार्क नेट पर विभिन्न परीक्षाओं के पेपर लीक होने से अंधेरे में चला जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर ये डार्क नेट क्या होता है, जहां स्कैमर विद्यार्थियों की परीक्षाओं को धोखा देते हैं।
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देश में NEET का पेपर लीक का मामला अभी भी जारी है, और UGC नेट का भी पेपर लीक हुआ है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन परीक्षाओं को लेकर कहा कि ये पत्र Darknet पर लीक हुए थे। और अब सवाल उठता है कि डार्कनेट क्या होता है, जो अपराधियों को पेपर लीक होने के बाद भी पता नहीं चलता है?
क्या होता है आखिर डार्कनेट ?
अब सवाल उठता है कि आखिर डार्क वेब या डार्क इंटरनेट क्या होता है? प्राप्त जानकारी के अनुसार, डार्क इंटरनेट असल में इंटरनेट का वह हिस्सा है, जहां सभी प्रकार की कार्यवाही की जाती है। दरअसल, डार्क वेब और डीप वेब इंटरनेट का 96 प्रतिशत हिस्सा हैं। सरफेस वेब, जिसमें यूजर्स इंटरनेट सामग्री का सिर्फ 4 प्रतिशत इस्तेमाल करते हैं, डीप वेब पर मौजूद सामग्री को एक्सेस करने के लिए पासवर्ड आवश्यक हैं।
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वहीं साइबर एक्सपर्ट टॉर ब्राउजर का उपयोग करके डार्क वेब को खोलें। डार्क वेब पर ड्रग्स, हथियार, पासवर्ड और चाईल्ड पॉर्न भी मिलते हैं। बता दें कि डार्क वेब ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। यूजर्स को सुरक्षित रखने और ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाने के लिए ये कई जगह रूट और री-रूट करता है। आसान शब्दों में, इस डार्क वेब को ट्रैक करना मुश्किल है क्योंकि यह कई आईपी एड्रेस से जुड़ा हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, डार्क वेब पर डील करने के लिए वर्चुअल करेंसी, जैसे बिटकॉइन, का उपयोग किया जाता है। इसलिए ये पकड़ना मुश्किल है।
डार्क वेब पर केवल पेपर लीक जैसे अपराध नहीं होते। बल्कि हथियारों की तस्करी जैसे अवैध कार्यों के लिए भी सुपारी दी जाती है। डार्क वेब पर बहुत से स्कैमर्स हैं जो बैन उत्पादों को बहुत कम मूल्य पर बेचते हैं।
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