Battle Against Smog In India: ठंड की शुरुआत के साथ ही राजधानी दिल्ली में लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल हो चुका है। जहलीरी हवाओं के कारण बीमारीयां भी बढ़ रही है। दिल्ली के कई इलाकों का AQI 500 के पार पहुंच गया है। पॉल्यूशन की समस्या से निजात पाने के लिए ग्रैप-4 भी लागू किया गया है। जिसमें सरकार ने कई पाबंदियां लगाई हैं। दिल्ली के साथ ही कई और भी राज्य हैं, जिनमें लोगों को पॉल्यूशन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन केवल भारत में ही पॉल्यूशन की समस्या नहीं है बल्कि भारत के अलावा कई अन्य देश भी हैं जिन्होंने पॉल्यूशन की गंभीर स्थिती से जूझते हुए उसका सामाधान निकाला और कामयाब भी हुए।
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दरअसल, 1990 में चीन की राजधानी बीजिंग भी प्रदूषण से पीड़ित थी। उस समय चीन की सरकार ने लोगों को घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी। ऐसी स्थिती सिर्फ बीजिंग में नहीं थी बल्कि चीन के अनेक शहरों में पैदा हुई थी। यह देखते हुए, 1998 में चीनी सरकार ने प्रदूषण के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। सरकार ने कोयले का उपयोग कम कर दिया तो वहीं कार्बन उत्सर्जन करने वाली गाड़ियों की संख्या भी घटाई गई।
साथ ही पूर्वी चीन में भी वर्टिकल फॉरेस्ट लगाए गए। जो प्रति वर्ष 25 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता था और प्रतिदिन 60 किलो ऑक्सीजन का उत्पादन करता था। चीन में शुद्ध हवा को बढ़ाने के लिए 100-100 मीटर ऊंचे स्मोग टावर लगाए गए। ग्रीन तकनीक का समर्थन हुआ। नतीजा ये निकला कि 15 साल के बाद, चीन में एयर पॉल्यूशन का लेवल बहुत कम हो गया, क्योंकि पॉल्यूशन फैलाने वाले उद्योगों पर कड़ी निगरानी की गई थी। 2013 में PM2.5 पॉलुटेंट का लेवल 90 g/m3 था, जैसा कि आंकड़ों में देखा गया, लेकिन 2017 में यह घटकर 58 g/m3 हो गया।
इसके अलावा मेक्सिको जो उत्तरी अमेरिका का देश है, उसमें भी इसी तरह की स्थिती थी। 1990 के दशक में मेक्सिको विश्व में सबसे प्रदूषित देश था। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने न सिर्फ तकनीक में सुधार किया बल्कि कार्बन उत्सर्जन और गैसोलीन का उपयोग भी कम किया। न्यू मैक्सिको में ऑयल रिफाईनरीज भी बंद कर दी गईं। यही बात पेरिस जो फ्रांस की राजधानी है उसकी भी थी। तो वहां भी एयर पॉल्यूशन का स्तर एक समय बहुत खतरनाक हो गया था। फ्रांस सरकार ने इसे नियंत्रित करने के लिए वीकेंड पर लोगों को सार्वजनिक परिवहन के लिए पूरी तरह फ्री कर दिया और बड़े इवेंट्स और फंक्शंस के लिए लोगों को कार और बाइक की शेयरिंग करने को बढ़ावा दिया।
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डेनमार्क में भी जब प्रदूषण का स्तर बढ़ा तो लोगों ने सार्वजनिक परिवहन का अधिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। यहाँ साइकिल चलाने वाले अधिक रहते हैं और बाइक चलाने वाले कम हैं। इसलिए, 2025 तक यहाँ कार्बन उत्सर्जन का स्तर कम हो जाएगा। स्विट्जरलैंड के कई शहरों में ब्लू जोन बनाए गए हैं ताकि पॉल्यूशन न बढ़े। यहां कोई भी एक घंटे तक फ्री पार्किंग कर सकता है। लेकिन इससे अधिक करने पर बड़ी फीस वसूलनी पड़ती है। इसके अलावा, शहरों में स्वतंत्र कार पार्किंग क्षेत्र बनाए गए हैं। कार को सिर्फ वहीं चलाया जा सकता है।