आज यानी सोमवार से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है। नवरात्रि के पहले दिन दिल्ली-NCR समेत देश के तमाम मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। लोग अपने घरों और मोहल्ले में कलश स्थापना कर माता रानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। इस बार का नवरात्रि पर्व बेहद खास होने वाला है क्योंकि माता रानी हाथी पर सवार होकर आईं हैं। पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
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जानिए किस दिन कौन सी माता की होती है पूजा-
नवरात्रि पर्व के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कूष्मांडा, पांचवें दिन मां स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। माता रानी के इन नौ दिव्य स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा करने से लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और घर में खुशियां छा जाती हैं।
पूजा-पाठ का ये है तरीका
सबसे पहले घर में साफ-सुथरे स्थान पर माता रानी की प्रतिमा स्थापित करें। नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है, जिसे घटस्थापना भी कहते हैं। इसे नवरात्रि के पहले दिन, शुभ मुहूर्त में स्थापित किया जाता है। कलश में गंगाजल या शुद्ध जल भरें। उसमें एक सिक्का, अक्षत (साबुत चावल), सुपारी, हल्दी की गांठ, और थोड़ी दूर्वा घास डालें। कलश के मुख पर आम या अशोक के पांच पत्ते रखें। एक नारियल पर लाल कपड़े या चुनरी को मौली से बांधें और उसे कलश के ऊपर रखें। फिर इस कलश को जौ वाले पात्र के बीचो-बीच स्थापित करें। इसके साथ ही अखंड ज्योति जलाने के लिए एक बड़ा दीपक स्थापित करें। ताकि यह दीपक नौ दिनों तक लगातार जलता रहना चाहिए। वहीं मां दुर्गा को लाल वस्त्र, लाल फूल और फूलों की माला अर्पित करें। मां को सोलह श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। धूप और घी का दीपक जलाएं। मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप करें, जैसे ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नम:’। दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। प्रतिदिन सुबह और शाम मां दुर्गा की आरती करें। मां को फल, मिठाई और अन्य सात्विक चीजों का भोग लगाएं। नौ दिनों तक हर दिन अलग-अलग देवी के अनुसार भोग चढ़ाया जाता है।
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इसके बाद अष्टमी या नवमी तिथि पर हवन करना बहुत शुभ माना जाता है। हवन कुंड में आम की लकड़ी, जौ, तिल, घी, गुग्गल, कमलगट्टा और अन्य सामग्री से हवन करें। आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन करें। नौ कन्याओं और एक बालक को भोजन कराएं और उनका आशीर्वाद लें। दशहरा के दिन कलश और बोए गए जौ का विसर्जन करें।