Chaitra Navratri 2025: आज चैत्र नवरात्रि का छठा दिन और शुक्रवार व्रत है. आज सप्तमी के दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करते हैं. असुर रक्त-बीज का वध करने के लिए मां दुर्गा ने कालरात्रि स्वरूप धारण किया. उनका रूप भयनाक है. वे चार भुजा वाली श्याम वर्ण की देवी हैं, जो हाथों में वज्र और कटार धारण करती हैं. उनका वाहन गर्दभ है. वे रात्रि के समान भयनाक और काली के स्वरूप वाली हैं. इस वजह से इनको कालरात्रि कहते हैं. आपको बता दें कि जो मां कालरात्रि की पूजा करते हैं, उनको शुभ फल की प्राप्ति होती है. क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: मंत्र से पूजा करके गुड़ का भोग लगाएं. लाल गुड़हल और गुलाब का फूल अर्पित करें. इस देवी की कृपा से अकाल मृत्यु, अनजाने भय से मुक्ति मिलती है. दुश्मनों पर जीत हासिल होती है.
Read also- भारतीय रेल का नया कीर्तिमान, कोच निर्माण में दुनिया का अग्रणी देश बनकर उभरा भारत
मां कालरात्रि की पौराणिक कथा- मां कालरात्रि का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में मिलता है। उनकी कथा यह दर्शाती है कि कैसे उन्होंने दैत्यों का संहार कर अपने भक्तों की रक्षा की। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, एक समय दानवों का अत्यंत क्रूर राजा शुंभ-निशुंभ और उसका सेनापति रक्तबीज तीनों लोकों पर अत्याचार कर रहे थे। उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और पृथ्वी पर भी आतंक मचा दिया।देवताओं ने मिलकर मां दुर्गा की उपासना की। उनकी प्रार्थना सुनकर माता ने अपने भयानक रूप कालरात्रि को प्रकट किया।
Read also- गुजरात महाअधिवेशन की तैयारी में जुटी कांग्रेस, दिल्ली में जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्षों के साथ हुई दूसरे दौर की बैठक
रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेता था। जब भी कोई उसे मारने की कोशिश करता, उसकी रक्त बूंदें धरती पर गिरते ही अनेक रक्तबीज उत्पन्न हो जाते। इससे युद्ध और कठिन होता जा रहा था।मां कालरात्रि ने इस समस्या का समाधान निकाला। उन्होंने अपने विकराल रूप में रक्तबीज पर आक्रमण किया और जब उसका रक्त गिरने लगा, तो उन्होंने उसे अपनी जिह्वा से चाट लिया। इससे रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरा ही नहीं और वह समाप्त हो गया।इसके बाद मां कालरात्रि ने शुंभ और निशुंभ का भी संहार किया और देवताओं को उनका स्वर्ग पुनः प्राप्त कराया।
