लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीएसी के 900 जवानों को डिमोशन किए जाने के मामले को गम्भीरता से लेते हुए उनके तत्काल प्रमोशन के आदेश दिए हैं।
उन्होंने कहा है कि सरकार के संज्ञान में लाए बगैर ऐसी कार्यवाही से पुलिस बल के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है। उन्होने पुलिस महानिदेशक को निर्देशित किया कि वे सभी जवानो की नियमानुसार पदोन्नति सुनिश्चित कराएं।
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साथ ही, सरकार के संज्ञान में प्रकरण को लाए बगैर ऐसा निर्णय जिन अधिकारियों द्वारा लिया गया है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित कर शासन को आख्या भी उपलब्ध कराएं।
गौरतलब है कि पीएसी से पुलिस में आए जवानों को प्रमोशन मांगने पर उन्हें मूल काडर पीएसी में भेजने का मामला सामने आया था। ऐसे 896 पुलिसकर्मियों को डिमोट करते हुए वापस किया गया जबकि 22 आरक्षियों को कॉन्स्टेबल के ही पद पर वापस भेजा गया।
इस बारे में विभाग का तर्क था कि आर्म्स पुलिस से सिविल पुलिस में पीएसी के 890 हेड कॉन्स्टेबल और छह एसआई का प्रमोशन नियम विरुद्ध किया गया था। इस संबंध में पीएसी के 1998 बैच के कॉन्स्टेबल जितेंद्र कुमार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी।
दरअसल, 2008 से पूर्व पीएसी जवानों को सिविल पुलिस में स्थानांतरण हो जाया करता था, इसके तहत कुल 932 पुलिसकर्मी पीएसी से सिविल पुलिस में आए।
उनमें 890 कांस्टेबल्स को हेड कांस्टेबल के पद पर प्रमोट किया गया, 6 को सब इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नति मिली, 22 कांस्टेबल के पद पर ही रहे और 14 की मृत्यु हो गई। पीएसी के जिन जवानों को सब इंस्पेक्टर पद पर प्रमोशन नहीं मिला उन्होंने अदालत का रुख किया।
अदालत ने इस मामले पर डीजीपी मुख्यालय से जवाब मांगा। अदालत को दिए अपने जवाब में डीजीपी मुख्यालय ने इस स्थानांतरण के आदेश को ही गलत बता दिया। जवाब में डीजीपी मुख्यालय की ओर से कहा गया कि पीएसी व सिविल पुलिस दो अलग-अलग सुरक्षा बल हैं।
पूर्व में पीएसी से कुछ लोगों की ड्यूटी सिविल पुलिस में लगाई गई थी, जिसे काडर ट्रांसफर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसका न तो कोई शासनादेश है, इसके बाद इन सभी जवानों को पीएसी में अपने पुराने पदों पर ही वापस आना पड़ा।
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