Dark Oxygen: वैज्ञानिकों की खोज में हर रोज एक नया खुलासा सामने आता है। इन खुलासों से दुनिया को नई जानकारी मिलती है। ऐसी ही एक नई जानकारी वैज्ञानिकों को समुद्र से मिली है, जिसमें एक चौंकाने वाला रहस्य सामने आया है। असल में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि प्रशांत महासागर के निचले भाग में ‘डार्क ऑक्सीजन’ की खोज की गई है। समुद्र की तलहटी में यह ऑक्सीजन छोटी-छोटी गेंदों के रूप में इधर-उधर फैली हुई हैं, जिसे देखकर वैज्ञानिकों का भी सिर चकरा गया है। आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
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वैज्ञानिकों को क्यों चौंका रहा यह मामला ? बता दें, यह डार्क ऑक्सीजन समुद्र से 4000 फीट नीचे पाई गई है, जहां पूरी तरह से अंधेरा था। वैज्ञानिकों का मानना है कि बिना सूर्य के प्रकाश के ऑक्सीजन बन पाना मुश्किल है। प्रकृति के नियमानुसार, पेड़ों और सूर्य के प्रकाश की मदद से फोटोसिंथेसिस प्रोसेस हो पाती है, जिसके बाद हमारे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बन पाता है। अब समुद्र की गहराई में ना तो कोई पेड़ है और ना ही वहां तक सूर्य का प्रकाश पहुंच पाता है, इसलिए ही इस पूरे मामले ने वैज्ञानिकों को भी आश्चर्य में डाल दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खोज ने वर्षों के सिद्धांत को बदलकर रख दिया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके बाद पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
रिसर्च ने दिया कई नए सवालों को जन्म ? इस रिसर्च ने पुराने सिद्धांतों पर तो प्रश्नचिह्न लगा ही दिया है, साथ ही कई नए सवाल भी वैज्ञानिकों के समक्ष खड़े कर दिए हैं। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्हें इससे पहले समुद्र में कुछ भी ऐसा देखने को नहीं मिला। उन्होंने समुद्र की तलहटी से हमेशा कंज्यूम होते देखा था ना कि प्रोड्यूस होते।
रिसर्च में बताया गया कि ऑक्सीजन धातु के नोड्यूल्स से निकलती है। उसके बाद ही H2O अणुओं को हाइड्रोजन या ऑक्सीजन में बांट देती है। रिसर्च का मानना है कि धरती पर एरोबिक जीव के लिए ऑक्सीजन का होना जरूरी था। अब तक वैज्ञानिक मान रहे थे कि प्रकाश संश्लेषण के बाद ही ऑक्सीजन का निर्माण हुआ होगा। अब इस खोज ने इस सिद्धांत को गलत ठहरा दिया है। इस रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों के मन में पृथ्वी पर जीवन को लेकर प्रश्न खड़े हो गए हैं।
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कैसे हो सकता है गहराई में ऑक्सीजन का निर्माण ? वैज्ञानिकों को वैसे तो अभी तक कोई पुख्ता सबूत या जानकारी नहीं मिली है लेकिन इसे लेकर वैज्ञानिक अलग- अलग अटकलें लगा रहें है। जिसमें बताया गया है कि मेटल मॉडयुलस के अंदर मौजूदा मेटल आयन जब इलेक्ट्रॉन का बंटवारा करते हैं तो उसमें से इलेक्ट्रिक चार्ज निकलता है। उन्हें पॉलिमेटेलिक नोड्यूल कहा जाता है। यह महासागर तल के विशाल क्षेत्रों को कवर करता है। शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि इसकी वजह से वहां पर ऑक्सीजन हो सकती है । दूसरा तरीका वैज्ञानिकों का मानना है कि अमोनिया के ऑक्सी-डाइजेशन की वजह से भी वहां पर ऑक्सीजन बन सकती है।