दिल्ली (अवैस उस्मानी): चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियो की मान्यता रद्द करने की मांग वाली अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान घोषणा करने से हम नहीं रोक सकते हैं, सवाल यह है कि उचित वादें क्या हैं? क्या हम मुफ़्त शिक्षा, पानी, बिजली को भी फ्रीबीज़ ही मानेंगे?, क्या इलेक्ट्रॉनिक आइटम फ्री में बांटने को भी वेलफेयर मानेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी इसके समर्थन या विरोध में है वह अपने सुझाव दें। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम राजनैतिक दलों को वादे करने से रोक नहीं सकते है, सवाल यह है कि सही वादे क्या हैं और फ्रीबीज क्या है, क्या हम मुफ्त शिक्षा के वादे को फ्रीबीज कह सकते है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम समाजवाद के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अगर समाज कल्याण का मतलब सभी चीजों को मुक्त रूप में बांटना है तो समाज कल्याण शब्द को गलत समझना हुआ। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि सवाल यह है कि वैध वादा क्या है? क्या फ्रीबीज है और क्या वह कल्याणकारी राज्य के लिए ठीक है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि एक सुझाव आया है कि राज्य के राजनीतिक दलों को मतदाताओं से वादा करने से रोका नहीं जा सकता, सवाल यह है कि फ्रीबीज़ क्या है इसको परिभाषित किये जाने की ज़रूरत है, क्या स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, उपभोक्ता की इलेक्ट्रॉनिक्स तक पहुंच को फ्रीबी के रूप में माना जा सकता है?
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मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा मनरेगा की तरह कई योजनाएं हैं, जो जीवन को गरिमा प्रदान करती हैं। मैं नहीं मानता कि सिर्फ वादे करना राजनीतिक पार्टियों के निर्वाचित होने का आधार नहीं हो सकता, कुछ वादे करते हैं और फिर भी वह निर्वाचित नहीं होते हैं। मामले में वरिष्ठ और सांसद कपिल सिब्बल ने भी अपने सुझाव सुप्रीम कोर्ट को दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सभी पक्षकारों से कहा वह मामले में अपने सुझाव शनिवार तक जमा करें और अपने सुझावों की एक कॉपी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को भी देने को कहा।
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