Earth: बचपन में जब हम ब्रह्मांड की तस्वीरें देखते थे तो हक्के-बक्के रह जाते थे। हम सोचते थे कि हमारी पृथ्वी ही सबसे बड़ी है, बाद में पता लगता था कि इससे बड़े-बड़े ग्रह हमारे अंतरिक्ष में मौजूद हैं। ग्रह पर रिंग जैसी आकृति अक्सर हमने ब्रह्मांड की तस्वीरों में ही देखी है, लेकिन क्या हो अगर हम आपको बताएं कि पृथ्वी (Earth) पर शनि जैसी वलय आकृतियाँ पाई गई है। वलय शब्द का अर्थ है किसी ग्रह की रिंग, जो शनि जैसे ग्रह के पास हाल में मौजूद है। अब सवाल ये उठता है कि अक्सर ये आकृतियाँ कैसे बनी और कहां से आई होगी? आइए जानते हैं
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कहां से आई ये वलय आकृतियां?
एक शोध में इस बात का खुलासा किया गया कि पृथ्वी पर कभी शनि ग्रह जैसी वलय आकृतियां (छल्ले) मौजूद थी। यह आकृतियां लगभग 466 मिलियन वर्ष पहले पाई गई थी। ऐसा कहा जाता है कि बहुत सारे उल्कापिंड जब पृथ्वी (Earth) से एक साथ टकराए तब इन आकृतियों का निर्माण हुआ था। इसकी वजह से ही पृथ्वी (Earth) पर बहुत कम समय में कई सारे क्रेटर बन गए थे।
बता दें कि इन क्रेटरों का प्रमाण यूरोप, रूस और चीन में भी पाया गया। यहां पर इन क्रेटरों में चूना पत्थर के भंडार मिले हैं। साथ ही एक अलग तरह का मलबा प्राप्त हुआ था, जो उल्कापिंड से निकलने वाले मलबे की तरह प्रतीत हो रहा था। रिसर्च करने पर यह संकेत भी मिले हैं कि यह उल्कापिंड बहुत ही कम समय के लिए स्पेस रेडिएशन के संपर्क में आए थे।
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कैसे बनती है किसी ग्रह की रिंग ?
कुछ ग्रहों के पास छल्ले जैसी आकृतियाँ मौजूद होती है, जैसे शनि ग्रह। रिसर्च में बहुत समय पहले ये आकृतियां पृथ्वी (Earth) पर होने के भी प्रमाण मिले। जब कोई छोटा क्षुद्रग्रह (Asteroid) किसी बड़े ग्रह के पास से गुजरता है तो गुरुत्वाकर्षण के कारण इन एस्टेरॉयड में खिंचाव हो जाता है। अगर कोई एस्टेरॉयड किसी बड़े ग्रह के ज्यादा करीब जाता है तो कई टुकड़ों में टूट जाता है। टूटे हुए सभी टुकड़े किसी बड़े ग्रह की परिक्रमा करने लगते हैं और उस ग्रह के छल्ले में बदल जाते हैं। इन छल्लों में मौजूद ये टुकड़ें बड़े पिंड पर गिरने लगते हैं, जिस से क्रेटर का निर्माण होता है।
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