चुनावी बॉन्ड मामला :30 सितंबर 2023 तक राजनीतिक पार्टियों को कितना मिला चंदा? SC ने इलेक्शन कमीशन से मांगा डेटा

(अवैस उस्मानी )Electoral Bonds: चुनावी बांड स्कीम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर 2023 तक चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन का डेटा दो हफ्ते में अदालत में जमा करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा मौजूदा चुनावी बांड योजना में कई खामियां हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा विधायिका चाहे तो और ज्यादा पारदर्शिता वाली योजना ला सकती है। संतुलन बनाने का काम कार्यपालिका को करना है न्यायपालिका को नहीं

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संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इस मामले में पांच विचार करने की जरूरत है। मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि नकद लेनदेन को कम करने की आवश्यकता है, चेक, ड्राफ्ट या प्रत्यक्ष डेबिट जैसे अधिकृत बैंकिंग चैनलों का उपयोग हो, पारदर्शिता हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बांड स्कीम किकबैक की स्वीकृति को वैध बनाने का एक तरीका ना बने। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा हमारे आदेश के बावजूद 2019 के बाद कोई डेटा क्यों नहीं जमा किया गया।।सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा आपको डेटा एकत्र करना जारी रखना था। याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि नई योजना के बाद भी चुनावों के वित्तपोषण के लिए काले धन का इस्तेमाल किया जा रहा है। याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अशुद्ध धन का चलन है, जैसा कि दावा किया जाता है वैसी कोई कोई पारदर्शिता नहीं है। मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सिर्फ योजना की संवैधानिकता पर विचार कर रहे हैं। एक योजना पूरी तरह असफल हो सकती है, लेकिन संवैधानिक रूप से वैध योजना हो सकती है। मुख्य न्यायधीश ने याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण से कहा आप जिन आधारों का हवाला दे रहे हैं वह किसी योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का आधार नहीं हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आपके रिकॉर्ड के मुताबिक़ बॉन्ड से कितना चंदा आया है? चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड का डिटेल सीलबंद लिफाफे में हैं। हमने इसे अभी तक नहीं खोला है। हम इसे नहीं खोल सकते। कोर्ट चाहे तो इसे खोल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से इलेक्टोरल बॉन्ड से अभी तक प्राप्त कुल चंदे का ब्यौरा कोर्ट में जमा करने का निर्देश  दिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकर्ताओं से पूछा कि आप क्या चाहते हैं? इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पूरी तरह रद्द करना चाहते हैं या कुछ और ? ययाचिकाकर्ता प्रशांत भूषण का जवाब  हम इस स्कीम का विरोध इसमें बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी की गोपनीयता के खिलाफ हैं। अगर यह गोपनीयता हटा दी जाती है तो इस स्कीम से कोई दिक्कत नहीं है।
केंद्र सरकार ने कहा चुनावी बांड ने साफ धन को राजनीतिक चंदे  के रूप में बढ़ावा दिया।इलेक्टोरल बॉन्ड्स मामले में नीति और सरकार की पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इससे लेवल प्लेइंग फील्ड यानी सबको समान अवसर की नीति पर कोई फर्क नहीं पड़ता। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जहां तक पारदर्शिता का सवाल है तो डिजिटल सिस्टम ही सबसे उपयुक्त है। चाहे यह सिस्टम अपनाया जाए या कोई और या फिर कोई और। लेकिन सभी सिस्टम की अपनी छाप होगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस नीति में सरकार ने फर्जी कंपनियों की आड़ में चुनावी चंदा के फर्जीवाड़े को खत्म कर साफ धन को राजनीतिक चंदे  के रूप में बढ़ावा दिया गया है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह मानना गलत है कि सभी लेनदेन भ्रष्टाचार का हिस्सा हैं। इस नीति के मुताबिक कोई भी आम नागरिक बॉन्ड खरीद सकता है। एकल, साझा तौर पर भी इसकी खरीद हो सकती है। समुचित राजनीतिक पार्टी ही इसे अधिकृत बैंक खाते के जरिए ही भुना सकती है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इससे उन कागजी राजनीतिक पार्टियों पर लगाम लगेगी जो सिर्फ कला धन सफेद करने या फिर नकदी चंदा लेकर आयकर में लोगों को छूट दिलाने का गोरखधंधा करती हैं। उनको इस सिस्टम के जरिए बाहर किए जाने की मंशा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा बॉन्ड एक पखवाड़े में ही भुनाया जा सकता है। इसके बाद कोई राजनीतिक पार्टी इसका भुगतान नहीं पा सकती। जबकि राजनीतिक पार्टी तय समय सीमा में जिस दिन जमा करेगी उसी दिन उनके खाते में रकम जमा हो जाएगी।
चुनावी बांड को चुनौती देने के मामले पर सुनवाई के दौरान CJI की  टिप्पणी – इलेक्टोरल बॉन्ड सिलेक्टिव लोगों के लिए ही गोपनीय है। किसने किस पार्टी को कितना डोनेशन दिया है इसके बारे केवल एजेंसियों या SBI को पता होगा। यह योजना सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं देती। इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान सॉलिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सत्ताधारी पार्टी के खाते में ही अधिक डोनेशन जाता है। यही नॉर्म है। मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि आखिर ऐसा क्यों है कि रूलिंग पार्टी को अधिक डॉनेशन जाता है ? सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मैं ऐसा कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि इसकी वजह क्या है। लेकिन आंकड़े यही बताते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। सरकार की राय नहीं है। सभी पार्टियों के काम करने का अपना अपना तरीका है, अपनी पॉलिसी होती है। और डोनेशन देने वाले इस बात को जानते हैं।

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