(अजय पाल)Electoral Bonds: चुनावी बाॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट से बडी खबर सामने आई। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने आज याऩि 15 फरवरी को चुनावी बाॉन्ड पर अपना फैसला सुनाया। इलेक्टेरल बॉन्ड की कानूनी वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने बोल दी बड़ी बात- बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक माना है। सीजेआई ने कहा ये सर्वसम्मत फैसला है। सीजेआई ने कहा कि दो मत है है इसमें जो मत है ।लेकिन एक ही निकषर्ष पर पहुंच रहे है।भारत सरकार साल 2017 में ये कानून लेकर आई थी ।कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम अनुच्छेद 19( 1) का उल्लंघन है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है । सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में मोदी सरकार के फैसले को पलट दिया है ।
सीजेआई आगे बोलते है। अनुच्छेद 19(1)(ए) तहत सूचना के अधिकार में राजनैतिक फंडिग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा इस अदालत ने सामाजिक ,राजनैतिक और आर्थिक मुद्दे के बारे में जानने के अधिकार को मान्यता दी है।और यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सहभागी लोकतंत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाने तक जाता है।
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सरकार ने दो जनवरी 2018 को इस योजना को नोटिफाई किया था और इसे राजनैतिक चंदे में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के तहत राजनैतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे के विकल्प के तौर पर पेश किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के प्रावधानों के मुताबिक देश का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था इसे खरीद सकता है।
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