Himachal: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ में दशहरे पर रावण को जलाने का रिवाज नहीं है क्योंकि इस शहर के लोग दशानन को खलनायक नहीं मानते हैं, यही वजह है कि कि यहां दशहरा नहीं मनाया जाता। बैजनाथ के लोग लंका नरेश को उनकी तपस्या और भक्ति के लिए याद करते हैं, उनका मानना है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी। Himachal
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यहां एक मशहूर किस्सा है कि बैजनाथ में दशहरे पर जब कभी रावण के पुतले जलाने की कोशिश की गई तो उस प्रयास में कई लोगों की जान चली गई थी।नागर शैली में बने बैजनाथ मंदिर में शिवलिंग इस जगह से जुड़ी पौराणिक कथा की याद दिलाता है।लेकिन ये सुंदर शहर देश के उन दुर्लभ जगहों में से एक है, जहां लोग रावण के सम्मान में दशहरा नहीं मनाते हैं।Himachal
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जानें दशहरे का महत्व- देशभर में आज दशहरा पर्व की धूम है। शास्त्रों के अनुसार दशहरा भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है, उन्होंने लंकापति रावण का वध कर धर्म और सत्य की जीत की रक्षा की थी। ग्रंथों के मुताबिक इस तिथि पर मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध भी किया था। इसलिए दशहरा को शक्ति की जीत का पर्व कहा गया है। दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में रामलीला में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहन भी किया जाता है, जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी कहते है। इस दौरान पुतलों के दहन के बाद सभी एक दूसरे को इस दिन की शुभकामनाएं देते है। Himachal