ई-कचरे का अगर हो सही निपाटारा तो भारत को बना सकता है मालामाल

कभी सोचा है की जब आपका मोबाइल, लैपटॉप या कोई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस अगर खराब हो जाता है तो फिर उसका क्या होता होगा। हर रोज मार्केट में नई तकनीक आ रही है। ऐसे में नई तकनीक की चाहत में हम नए नए गैजेट्स को खरीदते है और पुराने गैजेट्स को कचरे में फेंक देते है। इस तरह हमारे आस-पास ई-कचरे का ढेर इकठ्ठा हो जाता है। आजकल के कचरे में लोहा और स्टील ही नहीं बल्कि सिलिकॉन और कोबाल्ट जैसे रेयर धातु भी है। नए तकनीक की रेस में हम पुराने डिवाइस को बदलते रहते है। इस तरह ई-कचरे का ढेर हमारे पास जमा होता रहता है और हमें भी पता भी नहीं चलता है।

क्या है ई-कचरा ?

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को जब इस्तेमाल करना बंद कर देते है तो वो ई-कचरे में बदल जाता है। यह 21 वीं सदी के लिए उतना ही खतरनाक है जितना की पर्यावरण के लिए ग्लोबल वार्मिंग। ई- कचरा पर्यावरण और धरती के लिए खतरनाक तो होता ही है लेकिन अगर इसका सही तरीके से निवारण किया जाये तो यह किसी वरदान से कम नहीं है।

एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में लगभग 30 से 50 मिलियन टन ई- कचरा पैदा होता है। वहीं भारत लगभग 2 टन मिलियन टन वेस्ट का अकेले उत्पादन करत है। ई वेस्ट उत्पादन के मामले में अमेरिका, चीन, जापान, के बाद भारत 5 वें स्थान पर है। 2016 2017 में भारत में ई-वेस्ट का केवल 0.0036 परसेंट ही इ कचरे का निपटारा किया था। भारत में गलत तरीके से हो रहे ई-वेस्ट के निपटारे के कारण इसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यहां तक की जरुरी मिनरल्स और संसाधनों की रिकवरी भी कम हो रही है। जिससे भारत में संसाधनों की बर्बादी और पर्यावरण का नुकसान दोनों ही हो रहा है।

जानकारी के अनुसार भारत में अधिकतर पंजीकृत रिसाइक्लर सही तरीके से ई-वेस्ट का रिसाइकल ही नहीं कर रहे है। यहां तक की वो ऐसे कचरे का स्टोर भी काफी खतरनाक तरीकों से कर रहे हैं। भारत में सबसे बड़ा ई-वेस्ट निपटान केंद्र दिल्ली के सीलमपुर में है। जहां बच्चों से लेकर बड़े तक कचरे से रियूजेबल धातु निकालने में 8 से 9 घंटे लगाते हैं।

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भारत में ई-कचरे मैनेजमेंट के लिए 2011 में कानून बनया गया था। जिसके तहत पंजीकृत और अधिकृत इ वेस्ट निपटारा केंद्र ही इलेक्ट्रोनिक कचरे को इकठ्ठा कर सकते है। इस नियम को लेकर एक नई PRO के निर्माण की व्यवस्था की गयी जिसमें उत्पादकों को अपना टारगेट पूरा करना होता है। जो उनकी बिक्री से उत्पन्न वेस्ट का 20 परसेंट होता है। इसके अलावा अगले 5 साल तक टारगेट में सलाना 10 परसेंट की बढ़ोतरी होती रहेगी। इस कानून के तहत उत्पादकों की जिम्मेदारी सिर्फ वेस्ट इकठ्ठा करना ही नहीं बल्कि इसे रिसाइक्लिंग केंद्र तक पहुंचाना भी है। इसके बावजूद ई-वेस्ट को अनौपचारिक रिसाइक्लिंग केंद्र द्वारा गलत तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरों को डिस्पोज किया जा रहा है, जो पर्यावरण ही नहीं मानव हेल्थ के लिए भी नुकसानदायक है। यही नहीं इससे भू-जल और मिट्टी भी दूषित हो रही है।

कैसे बन सकता है इकोनॉमिक बूस्टर?

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में जिन मेटल और मिनरल का इस्तेमाल किया जाता है भारत में उसकी बहुत कमी है। इसलिय ई -वेस्ट के रिसाइक्लिंग पर और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। और यह प्रोसेस बाकि सारे प्रोसेस से आसान और सस्ता है। बहुत सारे खनिज बिना ट्रीट के ही लैंडफिल में चले जाते है। ऐसे में एक मजबूत व्यवस्था होनी चाहिए जो इ वेस्ट का अच्छी तरह रिसाइकल किया जा सके और रोजगार पैदा किया जा सके।

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