Jammu Kashmir: जम्मू की एक विशेष अदालत ने पहलगाम आतंकी हमले के सिलसिले में गिरफ्तार दो लोगों के ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ और ‘नार्को एनालिसिस’ परीक्षण के लिए एनआईए की याचिका को खारिज कर दिया है और कहा है कि “वैज्ञानिक तकनीक” खुद के खिलाफ साक्ष्य देने से बचने के अधिकार का हनन करती हैं। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अदालत को सूचित किया था कि आरोपियों ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए दोनों परीक्षणों के लिए अपनी सहमति दे दी है। केंद्रीय एजेंसी ने 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के पांच दिन बाद मामले की जांच अपने हाथ में ली थी। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी। Jammu Kashmir
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हालांकि, आरोपी बशीर अहमद जोतद और परवेज अहमद ने एनआईए के दावे का खंडन किया। उन्हें आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में 26 जून को गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने अपने छह पेज के आदेश में कहा, आज दोनों आरोपियों को पेश किया गया… दोनों आरोपियों ने खुली अदालत में कहा है कि वे पॉलीग्राफ या नार्को एनालिसिस परीक्षण कराने के इच्छुक नहीं हैं। अदालत ने 29 अगस्त को आदेश दिया था जिसका विवरण अब सामने आया है। इसमें कहा गया है कि एनआईए के मुख्य जांच अधिकारी ने अदालत से दोनों का ‘पॉलीग्राफ टेस्ट’ और ‘नार्को एनालिसिस’ कराने की अनुमति मांगी है। Jammu Kashmir
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बचाव पक्ष के वकील ने एनआईए के इस दावे का भी खंडन किया कि जोतद और अहमद ने स्वेच्छा से परीक्षणों के लिए सहमति दी थी। उन्होंने एनआईए की याचिका को खारिज करने की मांग की, क्योंकि एनआईए ने आरोपियों से हिरासत में स्वैच्छिक सहमति का बयान नहीं लिया था। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति पर उसकी इच्छा के विरुद्ध नार्को-एनालिसिस, पॉलिग्राफ टेस्ट जैसी वैज्ञानिक तकनीकें लागू करना संविधान में दिए गए खुद के खिलाफ साक्ष्य देने से बचने के अधिकार का उल्लंघन होगा। आदेश में अदालत ने ‘पॉलिग्राफ टेस्ट’, ‘नार्को-एनालिसिस’, और ब्रेन इलेट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों का भी हवाला दिया।
