Kachhin Gaadi– 600 साल से ज्यादा पुरानी परंपरा को छत्तीसगढ़ के बस्तर में अब भी निभाया जा रहा है। यहां का दशहरा इसलिए खास है क्योंकि 75 दिनों तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत तभी होती है जब देवी ‘काछिन गादी’ बस्तर के राजा को उत्सव शुरू करने की इजाजत देती हैं। ‘काछिन गादी’ का अर्थ है कांटों का आसन। उत्सव की शुरुआत दलित समुदाय की नाबालिग लड़की के कंटीली चीजों से बने झूले पर बैठने से होती है।
इतिहासकारों के मुताबिक बस्तर के राजा ने माहरा समुदाय के लोगों को जंगली जानवरों के प्रकोप से बचाया था और बदले में समुदाय के लोगों ने उन्हें जगदलपुर में आमंत्रित किया था।इसी की याद में हर साल बस्तर दशहरा मनाया जाता है।
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प्रोफेसर एसपी. पी. तिवारी, इतिहासकार कहते है कि दशहरा पर्व आया और यहां पर महरा जनजाति की सेवा को देखते हुए राजा ने उनकी जो देवी थी कासन देवी। उस कासन देवी को अपने दशहरे पर्व में शामिल करने के लिए सबसे पहले उनकी अनुमति लेकर कर क्योंकि वहीं इस शहर की सबसे पुरानी देवी थीं। महरा जनजाति की। उस देवी से आज्ञा लेकर दशहरा पर्व मनाने के विधान की शुरूआत की।
बनमाली पाणिग्रही “हमारे बस्तर की रस्म भाग है इसमें देवी देवाओं का गढ़ माना जाता है। किसी भी शुभ काम करने के लिए हम लोग देवी-देवताओं से अनुमति लेते हैं। और ये आज का प्रावधान नहीं है ये वर्षों से चली आ रही है हम लोग घर में भी अगर शुभ काम करते हैं तो देवी-देवताओं से अनुमति लेते हैं। उत्सव के दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।’
Source- PTI
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