(प्रदीप कुमार)- उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति, जगदीप धनखड़ ने समापन भाषण दिया। महाराष्ट्र के राज्यपाल, रमेश बैस; लोक सभा अध्यक्ष, ओम बिरला; राज्य सभा के उपसभापति, हरिवंश; महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष, राहुल नार्वेकर; और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री, देवेन्द्र फड़नवीस ने समापन सत्र की शोभा बढ़ाई और विशिष्टजनों को संबोधित किया। इस सम्मेलन में 16 अध्यक्षों सहित 18 राज्यों के 26 पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर लोक सभा अध्यक्ष, ओम बिरला ने बताया कि दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को जनता से जोड़ने और उन्हें अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की कार्य योजनाओं पर चर्चा की।ओम बिरला ने कहा कि लोकतंत्र जनता के विश्वास और भरोसे पर चलता है,, इसलिए यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे अपनी कार्यशैली में आवश्यक बदलाव लाएँ और यदि आवश्यक हो तो नियमों में संशोधन भी करें ताकि इन संस्थाओं में जनता का विश्वास बढ़े।
विधायी निकायों की सर्वोत्तम प्रथाओं का उल्लेख करते हुए बिरला ने केंद्र, राज्य और जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच संवाद स्थापित करने के सुझाव की सराहना की। इस संबंध में उन्होंने लोक सभा द्वारा आयोजित आउटरीच कार्यक्रम का उल्लेख किया और सुझाव दिया कि राज्य विधानमंडलों को भी इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
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विधानमंडलों को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर देते हुए, बिरला ने कहा कि लोक सभा को एक मॉडल आईटी नीति बनाने और उन्हें राज्य विधायी निकायों के साथ साझा करने के लिए कुछ राज्य विधानमंडलों से सुझाव प्राप्त हुए हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस सुझाव पर विस्तार से चर्चा की जाएगी और उचित कार्रवाई की जाएगी। अपने वीडियो संबोधन में विधानमंडलों को पेपरलेस बनाने के संबंध में प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए, बिरला ने जानकारी दी कि लोक सभा ने डिजिटल संसद के माध्यम से इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।ओम बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि प्रौद्योगिकी का मार्ग भविष्य का मार्ग है और हमें जल्द से जल्द प्रौद्योगिकी में दक्षता हासिल करनी चाहिए । प्रधानमंत्री का ‘एक राष्ट्र, एक विधान मंच’ का सपना 2024 में साकार होगा।
विधानमंडलों के कामकाज में नई प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, श्री बिरला ने विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा expunged कार्यवाही के प्रसारण सम्बंधित एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि यह एक grey एरिया है और इस दिशा में एक कार्य योजना की आवश्यकता है। श्री बिरला ने राय दी कि सोशल मीडिया सहित मीडिया को संसदीय कार्यवाही के प्रामाणिक रिकॉर्ड की रिपोर्ट करनी चाहिए।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि विधानमंडल निर्बाध चर्चा के मंच हैं, बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि विधानमंडलों में बहस अधिक और व्यवधान कम होना चाहिए। श्री बिरला ने यह भी कहा कि विधानमंडलों को अधिक उत्पादकता के साथ कार्य करते हुए लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर गुणात्मक चर्चा करनी चाहिए । उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से ऐसी कार्ययोजना और रणनीति बनाने का आग्रह किया जिससे विधानमंडलों का समय बर्बाद न हो, और सदन के समय का उपयोग जनता के कल्याण के लिए वाद-विवाद और चर्चा में किया जा सके। श्री बिरला ने जोर देकर कहा कि जबरन और नियोजित स्थगन की घटनाएं और व्यवधानों के कारण संसद के समय की हानि लोकतंत्र के सभी हितधारकों के लिए चिंता का विषय है। ऐसी घटनाओं से सदन की गरिमा कम होती है और जनता के बीच नकारात्मक छवि बनती है।
ओम बिरला ने यह भी बताया कि दल-बदल विरोधी कानून की समीक्षा के लिए महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष, एडवोकेट राहुल नार्वेकर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी।समिति प्रणाली को मजबूत करने के दूसरी एजेंडा मद का उल्लेख करते हुए, बिरला ने कहा कि संसदीय समितियां संसदीय प्रक्रियाओं की जीवनधारा हैं और उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे प्रभावी शासन और कार्यपालिका की निगरानी के लिए शक्तिशाली साधन बनें ।अगले संसद सत्र की तैयारियों के संबंध में बिरला ने बताया कि संसद परिसर की मजबूत और अचूक सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। श्री बिरला ने कहा कि सुरक्षा व्यवस्था में परिसर के जोखिम और सदस्यों की गरिमा दोनों को ध्यान में रखा जाएगा।
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लोक सभा अध्यक्ष ने सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल और मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष को धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर महाराष्ट्र विधान सभा में विपक्ष के नेता, विजय वडेट्टीवार ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
महाराष्ट्र विधान परिषद की उप सभापति, डॉ. नीलम गोरहे ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।
इस दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई:
I लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत करने के लिए – संसद और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के विधानमंडलों में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की आवश्यकता; और
Ii समिति-व्यवस्था को अधिक उद्देश्यपूर्ण एवं प्रभावी कैसे बनाया जाये।
सम्मेलन के समापन पर निम्नलिखित संकल्प स्वीकार किए गए :
संकल्प 1
संसद और राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के विधानमंडलों से आग्रह करता है कि वे वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप एवं हमारे संविधान के प्रावधानों एवं उसकी भावना के अनुसार विधायी निकायों के प्रभावी कार्यकरण के लिए अपने विधानमंडलों की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों की समीक्षा करें और उनमें आवश्यक संशोधन करें।
संकल्प 2
हमारे देश के जीवंत और प्राचीन लोकतांत्रिक परंपराओं को और अधिक सशक्त करने के लिए संसद/राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के विधानमंडल जमीनी स्तर की लोकतान्त्रिक संस्थाओं, अर्थात, पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के क्षमता निर्माण हेतु प्रभावी कदम उठायें।
संकल्प 3
भारत के विधायी निकाय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सहित नई प्रौद्योगिकियों को अपनायें ताकि विधानमंडलों की दक्षता, पारदर्शिता और उत्पादकता में वृद्धि हो और उनके कार्यकरण में जन भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
संकल्प 4
विधानमंडलों की समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत, एआईपीओसी संकल्प लेती है कि कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए समितियों के कार्यकरण को और प्रभावी बनाने के सभी संभव प्रयास किये जाएं।
संकल्प – 5
एआईपीओसी संकल्प लेती है कि विधायिकाओं के बीच परस्पर संसाधनों और अनुभवों को साझा करने और नागरिकों को विधायिकाओं के साथ प्रभावी रूप से जोड़ने के उद्देश्य से “वन नेशन वन लेजिस्लेटिव प्लेटफॉर्म” के क्रियान्वयन हेतु सक्रिय कदम उठाए जाएंगे।