संसद भवन परिसर में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (ABRSM) के सदस्यों को संबोधित कर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत ने अपनी अनेकों विविधताओं के बावजूद संसदीय लोकतंत्र को सफलता से अपनाया है। उन्होंने कहा कि इन 75 वर्षों में देश ने कई संकटों और चुनौतियों का सामना किया है, और सभी चुनौतियों को चर्चा – संवाद के माध्यम से हल किया है।
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ओम बिरला रविवार को संसद भवन परिसर में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (ABRSM) के सदस्यों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र को देश में न केवल शासन का सबसे प्रभावी पद्धति माना जाता है बल्कि यह भारतीय परंपराओं और संस्कृति का अभिन्न अंग भी है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र, जो सदैव भारतीय समाज की आधारशिला रहा है, ने देश को आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ाने में मदद की है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने भारत में लोकतंत्र की नींव रखी, जिसे हमने वर्षों से लगातार मजबूत किया है। तकनीकी, सेवाओं, और शिक्षा में तेजी से हो रहे बदलावों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है हर व्यक्ति लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान दे। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षक राष्ट्र निर्माण में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।
विकसित भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य का उल्लेख करते हुए, ओम बिरला ने कहा कि इस लक्ष्य की पूर्ति का दायित्व शिक्षकों का है, जो छात्रों के विचारों में लोकतान्त्रिक सिद्धांतों का समावेश करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शैक्षिक संस्थान, जैसे IITs और NITs, न केवल ज्ञान का प्रसार करने में अग्रणी हैं, बल्कि उन्होंने दुनिया की कई समस्याओं के समाधान भी प्रदान किए हैं। यही कारण है कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे छात्र वैश्विक संदर्भ और तेजी से बदलती तकनीकों के साथ तालमेल बैठाने की क्षमता विकसित करें। इस सन्दर्भ में उन्होंने भी कहा कि शिक्षक केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि अपने अनुभवों और विचारों को साझा करके छात्रों को एक नई दिशा दिखाते हैं।
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भारत को दुनिया का सबसे बड़ा प्रौद्योगिकी और नवाचार हब बनाने के प्रयासों के परिप्रेक्ष में बिरला ने नवाचार और अनुसंधान में राष्ट्रीय क्षमताओं को और बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने संसद के कामकाज में तकनीकी नवाचारों के सक्रिय उपयोग का भी ज़िक्र किया। 22 भारतीय भाषाओं में समानांतर भाषांतरण और संसद में 1947 से लेकर अब तक सभी बहसों के डिजिटलीकरण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन कदमों ने न केवल संसदीय कार्य की दक्षता को बढ़ाया है, बल्कि भारत की संसद को एक तकनीकी रूप से उन्नत संस्थान बना दिया है। इस कार्यक्रम का आयोजन संसदीय शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (PRIDE) द्वारा किया गया।
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