MalegaonBlast: पांच न्यायाधीश, दो एजेंसियां और 17 साल लंबा इंतजार

MalegaonBlast

MalegaonBlast:  महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 के बम विस्फोट मामले में लगभग 17 वर्ष तक चले मुकदमे के दौरान न केवल जांच एजेंसियां बदलीं, बल्कि पांच अलग-अलग न्यायाधीशों ने भी मामले पर सुनवाई की। एक विशेष अदालत ने इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई ‘‘विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं हैं।’’ शुरुआत में मामले की जांच महाराष्ट्र के आतंकवाद-निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी, जिसने ‘अभिनव भारत’ समूह के सदस्य रहे दक्षिणपंथी चरमपंथियों पर दोष मढ़ा था। बाद में जांच एनआईए को सौंप दी गई, जिसने ठाकुर को क्लीन चिट दे दी थी। MalegaonBlast

Read Also: World Gold Council: सोने की वैश्विक मांग जून तिमाही में तीन प्रतिशत बढ़कर 1,249 टन हुई

हालांकि, अदालत ने प्रथम दृष्टया सबूतों का हवाला देते हुए उनके खिलाफ मुकदमा चलाया। प्रारंभ में अभियुक्तों को रिमांड पर भेजने से लेकर आरोप-पत्र दाखिल करने, आरोप तय करने, मुकदमे की शुरुआत और अंततः फैसला सुनाये जाने तक, यह मामला 2008 से 2025 के बीच पांच न्यायाधीशों की नजरों से गुजरा। विस्फोट के पीड़ितों और अभियुक्तों, दोनों ने न्यायाधीशों के बार-बार बदले जाने को मुकदमे की गति धीमी करने और इसमें लंबी देरी का एक महत्वपूर्ण कारण बताया।

आरोपियों में से एक, समीर कुलकर्णी ने कहा कि यह सबसे लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों में से एक था। उन्होंने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष, दोनों पर मुकदमे में तेज़ी लाने में विफल रहने का आरोप लगाया। कुलकर्णी ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाने का भी अनुरोध किया था। कुलकर्णी को आखिरकार मामले में बरी कर दिया गया है।

विस्फोट के कई पीड़ितों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता शहीद नदीम ने स्वीकार किया कि न्यायाधीशों के बार-बार तबादले से मुकदमे में वास्तव में बाधा आई। उन्होंने बताया कि मामले में भारी-भरकम रिकॉर्ड के कारण हर नए न्यायाधीश को नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ी, जिससे प्रक्रिया में और देरी हुई। इस मामले की सुनवाई करने वाले पहले विशेष न्यायाधीश वाई. डी. शिंदे थे। उन्होंने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य अभियुक्तों की प्रारंभिक रिमांड को लेकर फैसले दिए थे। न्यायाधीश शिंदे ने एक महत्वपूर्ण फैसले में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के इस्तेमाल को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि कोई भी आरोपी किसी संगठित अपराध गिरोह का हिस्सा नहीं था। MalegaonBlast

Read Also: Sports News: ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंडर-19 भारतीय टीम का नेतृत्व करेंगे आयुष म्हात्रे

उन्होंने कहा कि मकोका लगाने की यह कानूनी शर्त कि किसी आरोपी के खिलाफ एक से ज़्यादा आरोप-पत्र दाखिल होने चाहिए, पूरी नहीं हुई। हालांकि, बाद में राज्य सरकार की अपील पर बंबई उच्च न्यायालय ने मकोका को बहाल कर दिया था। न्यायाधीश शिंदे के बाद विशेष न्यायाधीश एस.डी. टेकाले ने 2015 से 2018 तक इस मामले की सुनवाई की, जब तक कि वार्षिक न्यायिक नियुक्तियों के दौरान उनका तबादला नहीं हो गया। न्यायाधीश टेकाले ने ही प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट देने के राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि प्रथम दृष्टया उन पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। MalegaonBlast

इसके बाद, विशेष न्यायाधीश वी.एस. पडलकर ने कार्यभार संभाला और अक्टूबर 2018 में ठाकुर, पुरोहित और पांच अन्य के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए। उनके कार्यकाल में पहले गवाह से पूछताछ के साथ मुकदमा आधिकारिक रूप से शुरू हुआ। न्यायाधीश पी.आर. सित्रे ने 2020 में पडलकर की सेवानिवृत्ति के बाद उनका स्थान लिया। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण मुकदमे में कुछ समय के लिए रुकावट आई। इन चुनौतियों के बावजूद, न्यायाधीश सित्रे ने अपने एक साल से थोड़े अधिक समय के कार्यकाल में 100 गवाहों से पूछताछ की। जब 2022 में न्यायाधीश सित्रे का तबादला होना था, तो विस्फोट पीड़ितों ने बंबई उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि आगे मुकदमे में और देरी से बचने के लिए तबादले पर रोक लगाई जाए। MalegaonBlast

Read Also: Bengaluru: CM सिद्धारमैया ने क्वांटम इंडिया शिखर सम्मेलन का किया उद्घाटन

न्यायाधीश सित्रे के तबादले के बाद, विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने जून 2022 में मुकदमे की सुनवाई अपने हाथ में ले ली। अप्रैल 2025 तक न्यायाधीश लाहोटी ने मुकदमे की सुनवाई जारी रखी। अप्रैल में जब उनका नासिक तबादला होना था, तब पीड़ितों ने उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को फिर से पत्र लिखकर तबादले पर रोक लगाने का अनुरोध किया, क्योंकि मुकदमा लगभग पूरा होने वाला था। उनकी याचिका पर विचार करते हुए विशेष एनआईए न्यायाधीश के रूप में न्यायाधीश लाहोटी का कार्यकाल अगस्त 2025 के अंत तक बढ़ा दिया गया, जिससे उन्हें मुकदमा पूरा करने की अनुमति मिल गई। MalegaonBlast

Top Hindi NewsLatest News Updates, Delhi Updates,Haryana News, click on Delhi FacebookDelhi twitter and Also Haryana FacebookHaryana Twitter

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *