मथुरा (रिपोर्ट- विनय सिंह): राजन्मभूमि विवाद सुलझने के बाद अब मथुरा कृष्ण जन्मभूमि सुर्खियों में है। शनिवार को इस मामले को लेकर कोर्ट में सिविल सूट दायर किया गया है। मथुरा सिविल कोर्ट में 13.37 एकड़ भूमि पर दावे को लेकर सिविल सूट दायर हुआ है। याचिका में कृष्ण जन्मभूमि की ज़मीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया है।
अयोध्या में राम मंदिर का मामला सुलझने के बाद अब मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का मामला कोर्ट पहुंच गया है। जन्मभूमि मामले को लेकर मथुरा की कोर्ट में सिविल मुकदमा दायर किया गया है। इसमें 13.37 एकड़ जमीन पर दावा किया गया है और साथ ही बनी हुई शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है।
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भगवान श्री कृष्ण विराजमान की रंजना अग्निहोत्री की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिका मथुरा कोर्ट में दायर की है। इस याचिका में साल 1968 में जमीन को लेकर हुए समझौते को गलत बताया गया है। इस याचिका में कहा गया है कि जिस जगह शाही मस्जिद है वहीं उसी जगह असल कारागार है जिसमें भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।
क्या है 1968 समझौता?
मथुरा में शादी ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि से लगी हुई बनी है। इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजेब ने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था और शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को जमीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे जिस पर मस्जिद खड़ी थी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा।
1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दाखिल किया लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। 1968 समझौते के अनुसार, शाही ईदगाह कमिटी और श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार, जमीन ट्रस्ट के पास रहेगी और मस्जिद के प्रबंधन अधिकार मुस्लिम कमिटी को दिए जाएंगे।
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हालांकि इस केस में प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट (Place of Woship Act) 1991 की रुकावट है। इस एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था उसी का रहेगा हालांकि इस एक्ट के तहत सिर्फ राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी।
गौरतलब है कि पिछले साल 9 नवंबर को अयोध्या पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में काशी, मथुरा समेत देश में नई मुकदमेबाजी के लिए दरवाजा बंद कर दिया था। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालतें ऐतिहासिक गलतियां नहीं सुधार सकतीं।