एसवाईएल विवाद पर केंद्र ने पंजाब-हरियाणा से कहा- ‘खुद निकालें समाधान’

Punjab-Haryana: On the SYL dispute, the Centre told Punjab and Haryana to find a solution themselves.

Punjab-Haryana: सतलुज-यमुना लिंक यानी SYL नहर विवाद पर एक बड़ी ख़बर सामने आई है। केंद्र सरकार अब इस मामले में खुली मध्यस्थता से पीछे हटती दिखाई दे रही है। पांच दौर की बेनतीजा बैठकों के बाद, केंद्र ने अब पंजाब और हरियाणा से कहा है कि वे आपसी बातचीत से इस मुद्दे का समाधान खोजें।  Punjab-Haryana

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर साफ कर दिया है कि दोनों राज्य SYL नहर के मुद्दे पर आपसी बातचीत और सकारात्मक सहयोग के साथ समाधान तलाश करें। केंद्र ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई पांच दौर की द्विपक्षीय बैठकों के बाद लिया है, जिनमें कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया।

हालांकि ​केंद्र सरकार ने पत्र में दोनों राज्यों को आश्वासन दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर वह उन्हें ज़रूरी सहयोग देगी। मंत्रालय का मानना है कि 5 अगस्त 2025 की अंतिम बैठक में दोनों राज्यों ने सकारात्मक भावना से आगे बढ़ने पर सहमति जताई थी। केंद्र सरकार का यह कदम राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र, बीजेपी नेतृत्व वाला केंद्र इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई राजनीतिक जोखिम लेने से बच रहा है। punjab-haryana-on-the-syl-dispute-the-centre-told Punjab-Haryana

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​इस बीच, पंजाब ने पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान पहले ही कह चुके हैं कि पंजाब के पास हरियाणा को देने के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है, इसलिए SYL नहर निर्माण का सवाल ही पैदा नहीं होता। जानकारों का कहना है कि केंद्र के मध्यस्थता से हटने के बाद, पंजाब अब खुद से बातचीत शुरू करने की स्थिति में नहीं होगा। SYL नहर की कुल लंबाई 214 किलोमीटर है, जिसमें से पंजाब का 122 किलोमीटर का हिस्सा अभी भी बिना निर्माण के पड़ा है। हरियाणा लंबे समय से नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रहा है, जिसने 2002 में पंजाब को यह नहर बनाने का निर्देश दिया था।  Punjab-Haryana

यह विवाद 1981 के पानी समझौते को लेकर भी उलझा हुआ है, जिसे 2004 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रद्द कर दिया था। हालांकि, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को अमान्य करार दिया था। अब सवाल यह है कि जब केंद्र ने मध्यस्थता से अपने हाथ खींच लिए हैं, तो क्या पंजाब और हरियाणा आपसी सहमति से इस दशकों पुराने विवाद को सुलझा पाएंगे? इस सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है।

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