कोटा के कोचिंग सेंटरों ने सरकार के बिल की सराहना की, छोटे सेंटरों ने कहा- ‘मौत का वारंट’

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Rajasthan: राजस्थान के कोटा में कोचिंग चलाने वाले समूह ने बीते गुरुवार 20 मार्च को राज्य विधानसभा में बुधवार को कोचिंग केंद्रों को कंट्रोल करने के लिए पेश किए गए विधेयक की तारीफ की और इसे “शिक्षण वातावरण” की दिशा में बेहतरीन कदम और स्टूडेंट के वित्तीय और मानसिक शोषण को रोकने के लिए “समय की मांग” बताया।

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हालांकि कक्षा छह से 12 तक शैक्षणिक ट्यूटोरियल प्रदान करने वाले छोटे कोचिंग संस्थानों के संघ हाड़ौती संभाग कोचिंग समिति ने विधेयक को “मौत का वारंट” कहा और इसमें संशोधन की मांग की। भजन लाल शर्मा की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने राजस्थान कोचिंग सेंटर (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक, 2025 पेश किया, जिसमें कोचिंग संस्थानों में प्रवेश की न्यूनतम आयु 16 साल के प्रतिबंध को हटाकर केंद्र के दिशा-निर्देशों के प्रावधानों को नरम किया गया, जबकि बैच अलगाव, बायोमेट्रिक उपस्थिति और प्रवेश के लिए योग्यता परीक्षण पर कई दूसरे उपायों में ढील दी गई।

बिल की सराहना करते हुए एलन करियर इंस्टीट्यूट के निदेशक नवीन माहेश्वरी ने कहा, “हम उन पहलों का स्वागत करते हैं, जो स्टूडेंट के लिए सहायक शिक्षण वातावरण में योगदान करते हैं। राजस्थान कोचिंग सेंटर (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक 2025 उस दिशा में एक कदम है, जो कोचिंग हालात के भीतर पारदर्शिता, निष्पक्ष प्रथाओं और मानसिक स्वास्थ्य सहायता को मजबूत करता है।” उन्होंने कहा कि कोटा जिला प्रशासन और कोटा स्टूडेंट्स वेलफेयर सोसाइटी की ओर से मिलकर शुरू की गई ‘कोटा केयर्स’ पहल ने पहले ही छात्र आवास, सुरक्षा और परामर्श में जरूरी सुधार पेश किए हैं।

नवीन माहेश्वरी ने आगे कहा, “ये विधेयक छात्र कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है और हम छात्रों के लिए सकारात्मक और तनाव मुक्त शिक्षण के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने के लिए समर्पित हैं।” करियर पॉइंट कोचिंग इंस्टीट्यूट और करियर पॉइंट यूनिवर्सिटी के संस्थापक निदेशक प्रमोद माहेश्वरी, जो खुद एक आईआईटीयन हैं। उन्होंने कहा कि निर्दोष छात्रों और उनके अभिभावकों के “शोषण” को रोकने के लिए ये विधेयक बहुत जरूरी है। प्रमोद माहेश्वरी ने कहा, “राजस्थान कोचिंग सेंटर (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक, 2025 मौजूदा वक्त में बेहद जरूरी है, ये समय की मांग है क्योंकि कोचिंग संस्थान जिस तरह के वादे कर रहे हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से पाता हूं कि वे (कोचिंग संस्थान) कई ऐसे लोगों को कोचिंग के लिए प्रेरित करते हैं, जिनमें परीक्षा पास करने की क्षमता नहीं होती है।”

केंद्र के दिशा-निर्देशों से राज्य के विधेयक में छूट के बारे में प्रमोद माहेश्वरी ने कहा कि कोचिंग संस्थानों को छात्रों के साथ अनुकूल तरीके से काम करने के लिए उचित मात्रा में लचीलेपन की जरूरत है। हालांकि, वो इस बात से सहमत नहीं थे कि कोचिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु सीमा हटाने से छात्रों के प्रवेश की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो पिछले साल कोटा में घटकर लगभग 40 फीसदी रह गई थी।

कोटा ऑटो चालक संघ के अध्यक्ष भूपेंद्र सक्सेना ने भी विधेयक का स्वागत किया, खासकर प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु सीमा हटाने और छूट देने का। उन्होंने कहा कि कोटा में कोचिंग संस्थानों और छात्रावासों में छात्रों के नामांकन की संख्या, जो पिछले शैक्षणिक सत्र में बहुत कम थी। अब अप्रैल से शुरू होने वाले नए सत्र में बढ़ने की संभावना है। कोटा की एक महिला ऑटो चालक गीता शर्मा ने कहा कि पिछले साल कोचिंग छात्रों की संख्या में गिरावट से ऑटो चालकों की मासिक आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और अगर ये विधेयक अनुकूल माहौल को पुनर्जीवित करने में मदद करता है तो ये उनके लिए अच्छा होगा।

छोटे कोचिंग संस्थानों के संघ हाड़ौती संभाग कोचिंग समिति के पदाधिकारी और सदस्य विधेयक के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए जिला कलेक्ट्रेट में एकत्र हुए और विधेयक में संशोधन की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि विधेयक के प्रावधान हजारों छात्रों को करियर और प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग प्रदान करने वाले उच्च तकनीक वाले कोचिंग संस्थानों के लिए तैयार किए गए हैं।

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समिति की कोटा जिला अध्यक्ष सोनिया राठौर ने कहा कि कक्षा छह से 12 तक की शिक्षा देने वाले छोटे कोचिंग संस्थानों को भी समान प्रावधानों और नियमों के साथ एक ही श्रेणी में रखा गया है। ये उनके लिए बिल्कुल भी उचित और व्यावहारिक नहीं है। समिति के महासचिव दिनेश विजयवर्गीय ने कहा, “हम विधेयक का विरोध नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कुछ नियामक तंत्र समय की मांग है। हम केवल छोटे कोचिंग संस्थानों के मद्देनजर मौजूदा प्रावधानों में संशोधन की मांग कर रहे हैं।” समिति के नेताओं ने कहा कि मौजूदा प्रावधानों के साथ ये विधेयक कई लोगों के लिए ‘मौत के वारंट’ की तरह है, जो सरकारी नौकरी हासिल करने में विफल होने के बाद आजीविका के लिए ट्यूटोरियल कक्षाएं चला रहे हैं।

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