Sharda Sinha: बिहार कोकिला के नाम से मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। उनके संगीत करियर का सफर आसान नहीं था। उनकी राह में भी कई रोड़े आए, मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी और इसी के चलते आज दुनिया में वो अपना अमर नाम कर गईं। सोहनलाल द्विवेदी जी की रचित ये पंक्तियां-“कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती” शारदा सिन्हा के संगीत करियर पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं।
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बता दें, 72 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाली शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर आज दिल्ली के एम्स अस्पताल से पटना पहुंच गया है। कल सुबह राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम नेताओं, फिल्म जगत के कलाकारों, संगीतकारों, संगीत प्रेमियों और उनके फैंस उनके निधन पर दुःख जताया है और संगीत जगत में इसे बहुत बड़ी क्षति बताया है। खास बात ये है कि अभी हाल ही में दिल्ली एम्स के ICU से साल 2024 के छठ महापर्व के मौके पर शारदा जी ने “दुखवा मिटाईं छठी मैया..” गीत को अपने बेटे अंशुमन से रिलीज करवाया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि उन्होंने कहा कि ‘इस ऑडियो को रीलिज कर दो. मैं रहूं ना रहूं लेकिन ये गीत मेरा अंतिम उपहार रह जाएगा।”
शारदा सिन्हा इसी साल पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित की गईं थीं। इससे पहले उन्हें पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। उनके लोकप्रिय छठ गीत, उग हो सुरुज देव, केलवा के पात पर, कांच ही बांस के बहंगिया, सूरज के रथ मैया, हे छठी मैया, बहंगी लचकत जाए, नदिया के तेरे जैसे कई गीत बहुत पसंद किए जाते हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि छठ का पर्व हो और कोई उनके गाए हुए गीत बिना बजाए ही उत्सव मना ले। शारदा सिन्हा ने कई फिल्मों में भी गीत गए हैं। उनके भोजपुरी, मैथिली और हिंदी भाषा के गीत बहुत प्रसिद्ध हैं। शारदा जी के हिंदी गीत जब फिल्मों में आए तो वो भी सुपरहिट साबित हुए। हम आपके है कौन का वो गीत ,’कहें तोसे सजना’, वहीं 1989 में शारदा ने हिंदी फिल्म माई में अभिनय भी किया। हाल ही में, अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में भी शारदा सिन्हा के गाए पारंपरिक गीत ‘हमारे पिया बहुत..’ को बहुत पसंद किया गया था।
संगीत करियर में संघर्ष
शारदा सिन्हा जी एक प्रसिद्ध गायिका थीं। उन्होंने अपने संगीत करियर में बड़े संघर्ष कर कई उपलब्धियां हासिल की। उनका जन्म बिहार के मिथला क्षेत्र के सुपौल जिला के हुलास गांव में 1 अक्टूबर साल 1952 में हुआ था। मिडिल क्लास परिवार में जन्मीं शारदा सिन्हा के पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनके पिता ने ही सबसे पहले बेटी की कला को पहचाना और आगे बढ़ने के लिए उनकी ट्रेनिंग शुरू करा दी। इस तरह पढ़ाई के साथ उनके संगीत का सफर हुआ। उसके बाद शारदा ने कला वर्ग में स्नातक किया था। मगर शादी के बाद एक समय आया जब ससुराल में शारदा को लगा कि उनका संगीत करियर अब खत्म होने वाला है, लेकिन पति के मिले सपोर्ट से उनकी संगीत साधना आगे भी जारी रही।
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एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपने संगीत करियर को लेकर कई खुलासे करते हुए कहा था कि,”उन्हें करियर के इस सफर में पहले कैसे रिजेक्ट किया गया और फिर बाद में बेगम अख्तर ने खूब शाबाशी भी दी। साथ ही उनके संगीत की सराहना करते हुए बेहतर सिंगर बनने के कई गुर भी सिखाए। शारदा ने बताया कि मेरे सफर की कहानी की शुरुआत होती है HMV से यानी ये ऐसा प्लेटफार्म था जो अलग अलग जगह जाकर संगीत प्रतियोगिता करता था और टैलेंट की खोज करता था। उस समय एक टैलेंट सर्च शुरू हुआ था, लखनऊ में ऑडिशन हो रहा था और मैंने भी उसमें हिस्सा लिया, मगर मुझे रिजेक्ट कर बाहर कर दिया गया। जिससे मैं काफी निराश हो गई थी या यूं कहें कि टूट सी गई थी। ये दूसरी बार था जब मुझे लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता। मगर फिर पति ने हौंसला बढ़ाया और मैं फिर उठी, संगीत का रियाज़ करना शुरू किया।
इसके बाद शारदा फिर से मैं ऑडिशन देने पहुंची, इस बार इत्तेफाक से जो उनका ऑडिशन ले रही थीं वो कोई और नहीं बल्कि दिग्गज सिंगर बेगम अख्तर थीं और उनको मेरी आवाज बहुत पसंद आई। उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि मेरी आवाज बहुत अच्छी है. बस थोड़ा रियाज करने की जरूरत है। फिर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और हौसला बढ़ाया। उसके बाद से मेरा जीवन ही बदल गया। फिर हर मुश्किल भी मुझे आगे बढ़ने से नहीं रोक पाई।
