Vice President Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि “दोस्तों, इस समग्र परिदृश्य [राष्ट्र में विकास] का सामना ऐसी ताकतों से हो रहा है, जो जाति, वर्ग, धर्म, रंग, संस्कृति और खानपान के कृत्रिम विभाजन को घातक तरीके से बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। यह मेरे स्तर पर, मेरी स्थिति में गहरी पीड़ा का कारण है कि लोग जो इस तरह के दृष्टिकोण में निहित खतरों को गहरे से समझते हैं, वे पार्टीगत हितों, संकीर्ण हितों से जुड़ गए हैं।
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आज उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में गोपीचंद पी. हिंदुजा, हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन द्वारा संकलित पुस्तक ‘I AM?’ के विमोचन के अवसर पर संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “यह पुस्तक भारतीयता की सार्वभौमिक प्रासंगिकता और सभी धर्मों में स्पष्ट रूप से दिखने वाली सद्गुणता को रेखांकित करती है। हम दूसरों के सत्य का सम्मान और सराहना कर सकते हैं धर्मान्तरण की चेष्टा किये बगैर । एकता का मतलब समानता नहीं है। भारतीयता इसका उत्तम उदाहरण है। यह विविधता में एकता का प्रतीक है।”मानव व्यवहार के सभी पहलुओं में, सहिष्णुता का मतलब दूसरों पर विजय प्राप्त करना नहीं है। विघटन को संवाद में बदलना चाहिए, अशांति को विचार-विमर्श में बदलना चाहिए, और संघर्ष को सहमति में बदलना चाहिए। अपरिवर्तनीय टकराव का रुख सभी धर्मों के सार के विपरीत है और यह गलत तरीके से आत्म-धार्मिकता और निर्णयात्मक दृष्टिकोण का प्रतीक है,” उन्होंने आगे कहा।
जनसांख्यिकी में गैर-प्राकृतिक, कृत्रिम रूप से इंजीनियर किए गए परिवर्तन पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “अगर उद्देश्य दूसरों पर प्रभुत्व, प्राथमिकता प्राप्त करना है, दूसरों पर जनसंख्या की ताकत से वर्चस्व स्थापित करना है, तो यह चिंता का विषय है। सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए, जैसा कि मैंने कहा, जो मानवता के एक-छठे हिस्से का घर है, और जिसकी समावेशिता का एक शानदार ऐतिहासिक रिकॉर्ड है, दुर्भाग्यवश, शरारती ताकतें रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ, भारत के विचार के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते हुए, षड्यंत्रपूर्ण राष्ट्र-विरोधी naratives, गैर-प्राकृतिक जनसांख्यिकीय परिवर्तन, लाखों अवैध प्रवासियों की घुसपैठ और आकर्षक धर्मांतरण के जरिए स्थान पा रही हैं।धर्म में विश्वास स्वैच्छिक होता है। यह conscience की पुकार होनी चाहिए। जो विश्वास छल-प्रपंच के माध्यम से उत्पन्न होता है, वह मानव शोषण का सबसे दीन-हीन रूप है, यदि यह प्रलोभनों और लालचों के माध्यम से हो।”