सुप्रीम कोर्ट 11 दिसंबर को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुना सकता है। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 11 दिसंबर, सोमवार की सूची के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की इस मामले पर फैसला सुनाएगी।पीठ के दूसरे सदस्य हैं न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी. गिरी और दूसरों की दलीलें सुनी थीं। याचिका करने वालों की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और दूसरे वरिष्ठ वकीलों ने बहस की थी।वकीलों ने प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के पांच अगस्त, 2019 के फैसले की संवैधानिक वैधता, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता, उप-राज्यपाल शासित प्रदेश बनाने जैसे मुद्दों पर बहस की।
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अनुच्छेद 370 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था।सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है, जब वहां कोई संविधान सभा मौजूद नहीं है, और जिसकी सहमति ऐसा कदम उठाने से पहले जरूरी है।सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा था कि अनुच्छेद 370 को खास तौर पर संविधान में एक अस्थायी प्रावधान के रूप में उल्लिखित किया गया था। 1957 में जम्मू और कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद ये स्थायी कैसे हो सकता है।अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वालों ने तर्क दिया था कि इस प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता था, क्योंकि जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में तत्कालीन राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद खत्म हो गया था।उन्होंने कहा था कि संविधान सभा के खत्म हो जाने से अनुच्छेद 370 को स्थायी दर्जा मिल गया है।केंद्र ने तर्क दिया था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई थी।
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