Vice President News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद में राज्यसभा प्रशिक्षु कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति का देश के दुश्मनों के साथ मिलन निंदनीय और घिनौना है। उन्होंने कहा कि “मैं इस बात से दुखी और परेशान हूं कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्हें न तो हमारे संविधान का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें राष्ट्रीय हित की कोई जानकारी है।”
अपने सम्बोधन में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि, “हम सच्चे भारतीय हैं, और हम अपने राष्ट्र में विश्वास करते हैं, इसलिए हम कभी भी राष्ट्र के दुश्मनों का पक्ष नहीं लेंगे।” उन्होंने कहा कि “हम सभी अपने राष्ट्रहित के लिए अंतिम सांस तक कृतसंकल्पित रहेंगे।”
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प्रारूप समिति के अध्यक्ष और भारतीय संविधान के जनक डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के कथन का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि, “जो बात मुझे बहुत परेशान करती है, वह यह है कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता एक बार खो दी थी, और वह भी अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण खोई थी।”राष्ट्रवाद और आज़ादी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि, “इस आज़ादी और देश की रक्षा करने में बहुत से लोगों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। माताओं ने अपने बेटे खोये हैं, पत्नियों ने अपने पति खोये हैं। हम अपने राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते।”
प्रत्येक नागरिक से विदेश में भारत के राजदूत के रूप में भूमिका निभाने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “यह कितना दुखद है कि संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति ठीक इसका उलटा कर रहा है! इससे अधिक निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता कि आप देश के शत्रुओं के साथ शामिल हो जाए।”
ऐसे लोग स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते। उन्होंने कहा कि “ऐसे लोग यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है, कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं। यह अज्ञानता की चरम सीमा है।”संविधान की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि “संविधान पवित्र है। इसे संविधान के संस्थापकों, संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 18 सत्रों में, बिना किसी व्यवधान, उपद्रव, तथा बिना नारेबाजी और बिना कोई पोस्टर लहराए, तीन साल की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि कई विभाजनकारी मुद्दों के बावजूद संविधान सभा का यह संवाद, चर्चा, सकारात्मक बहस और विचार-विमर्श के प्रभावी तंत्र से संभव हुआ था। संविधान सभा के कार्यों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “उनके सामने जो चुनौतियां थीं, वे हिमालय की दुर्गम चढ़ाइयों से भी ज्यादा कठिन थीं और सहमति बनाना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने इसके लिए काम किया और अब, कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं। यह अज्ञानता की चरम सीमा है।”
इस मौके पर पी.सी. मोदी, महासचिव, राज्य सभा, रजित पुन्हानी सचिव, राज्य सभा, डॉ. वंदना कुमार, अतिरिक्त सचिव, राज्य सभा और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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