UP: ‘पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती’ इसकी मिसाल पेश कर रही हैं गाजियाबाद की ये महिलाएं

UP: These women of Ghaziabad are setting the example of 'there is no age for education'

UP: कहते हैं पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की ये महिलाएं इसकी मिसाल कायम कर रही हैं। एक्शन एड इंडिया और यूनिसेफ की तरफ से चलाए जा रहे ‘न्यू इनिशिएटिव एजुकेशन प्रोजेक्ट’ के तहत ये बुजुर्ग महिलाएं फ्री बेसिक शिक्षा ले रही हैं। स्कूल जाने वाली लड़कियां ट्रेनिंग के बाद, इन महिलाओं को अपने घरों में छोटे से स्कूलनुमा माहौल में पढ़ाती हैं। इन महिलाओं की कोशिश है कि बेसिक शिक्षा के साथ वो आजाद और आत्मनिर्भर जीवन जी सकें। जीवन के इस पड़ाव पर पढ़ने और कुछ नया सीखने की उनकी लगन सुबूत है कि जब कोई अपने सपनों को सच करना चाहता है तो उम्र की कोई बाधा नहीं होती है।

पढ़ने की है महिलाओं की इच्छा

बता दें, जिला कोऑर्डिनेटर नीलम वैश्य ने कहा कि महिलाओं ने खुद पहल की है और मैं तो आई थी इनको सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए और इनकी मदद के लिए। लेकिन इन्होंने कहा हमें पढ़ना है, इनकी अपनी प्रॉब्लम है। जैसे कि कई महिलाएं हैं जो घड़ी नहीं देख पाती हैं, उनको घड़ी देखने के लिए पढ़ना है। कई महिलाएं हैं जो बैंक में जाती हैं बाउचर नहीं भर पाती हैं, उसके लिए मदद मांगती हैं तो लोग मदद के लिए आगे नहीं आते हैं। उन्होंने बताया कि इन महिलाओं के अपने बच्चे भी हैं पर इनको यहां आकर पढ़ना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि महिलाएं सारी एक जगह होती हैं।

इन महिलाओं को पढ़ाने वाली आठवीं की छात्रा ने कहा…

महिलाओं को पढ़ाने वाली आठवीं की एक छात्रा अंजुम से पूछा गया कि आप आजकल यहां जिन महिलाओं को पढ़ना सिखा रही हैं वे सभी तुम्हारी दादी की उम्र की हैं तो तुम्हें उन महिलाओं को पढ़ाने कैसा महसूस होता है? इस पर उस आठवीं की छात्रा अंजुम ने कहा कि मुझे बहुत अच्छा लगता है। इन लोगों को पढ़ना नहीं आता तो हम इन्हें सिखाते हैं, वो सिखते हैं तो अच्छा लगता है कि उन्हें भी लगेगा की हमारे बच्चे हमें कुछ सिखा रहे हैं।

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महिला स्टूडेंट्स ने बताई अपनी आपबीती

वहां की महिला स्टूडेंट अत्रि देवी ने बताया कि बचपन में हमें मां-बाप ने नहीं पढ़ाया। अब हमारी जिम्मेदारी है, हमारा आदमी भी खत्म हो गया। अब हम अपने मन से ही पढ़ने आए हैं। मैडम ने बोला मैं पढ़ाऊंगी, तो मैंने बोली चलो तुम्हारे पास पढ़ लेंगे। दूसरी महिला स्टूडेंट कमलावति ने कहा कि जैसे हम रास्ते में जाते हैं रेल वगैरह में तो रास्ता भूल जाते हैं और कहीं न कहीं निकल जाते हैं। हम सब ने सोचा कि ऐसा तो सही नहीं है। दो-तीन बार शर्म सी महसूस होने लगी और आजकल बच्चों से पूछते हैं तो वो इंग्लिश में जवाब देते हैं और हमें तो हिंदी भी नहीं आती तो इंग्लिश हम क्या सीखेंगे। हमने सोचा कि इससे अच्छा होगा कि हम थोड़ा पढ़ लेंगे जानकारी रहेगी तो किसी के सहारे तो नहीं रहेंगे न अकेले जा तो सकेंगे कहीं।

वहां उपस्थित एक और महिला स्टूडेंट शमा ने कहा कि बचपन में तो मां-बाप पढ़ने भेजते थे लेकिन तब पता नहीं था कि पढ़ाई इतनी जरूरी है। आज पता चल रहा है पढ़े-लिखे होते तो कुछ कर सकते थे। आज जिंदगी में बहुत परेशानी है। सोच रही हूं थोड़ा बहुत पढ़-लिख जाऊंगी तो होशियार तो हो जाऊंगी।

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